राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020)

नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 (एनईपी 2020) क्या है?
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 (एनईपी 2020) भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए एक व्यापक रूपरेखा है, जो कि एक विद्यार्थी के प्रारंभिक बचपन की देखभाल से लेकर उच्च शिक्षा तक फैली हुई है। इसका उद्देश्य एक समग्र, लचीली और बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली बनाना है जो कि भारतीय मूल्यों और संस्कृति पर आधारित हो, और साथ ही विद्यार्थियों को 21वीं सदी की जरूरतों के हिसाब से तैयार कर सकें। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति रटने की बजाय वैचारिक समझ, रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और नैतिक विवेक को बढ़ावा देती है। इसके अतिरिक्त यह समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए समानता और समावेशन पर विशेष ज़ोर देती है।
एनईपी 2020, 1986 की पूर्व नेशनल एजुकेशन पॉलिसी की जगह लेती है जिसे 1992 में संशोधित किया गया था। 34 वर्षों के बाद यह शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत है।
स्कूल शिक्षा के लिए एनईपी 2020 की मुख्य बातें
- इसके अंतर्गत 2025 तक सभी प्राथमिक स्कूल के छात्रों के लिए बुनियादी साक्षरता और अंक-ज्ञान सुनिश्चित किया जाएगा, जिससे उन छात्रों में एक मजबूत शैक्षिक आधार तैयार होगा।
- यह शिक्षा नीति 5+3+3+4 स्कूल संरचना को प्रस्तुत करती है, जिसमें अनुभवात्मक शिक्षा, विषयों की कठोरता में कमी, एवं बहु-विषयक दृष्टिकोण को शामिल किया गया है।
- इसमें बोर्ड परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली को नया स्वरूप दिया गया है, जिसमें बेहतर शिक्षण परिणामों के लिए कई बार प्रयास करने और लचीली मूल्यांकन प्रणाली की सुविधा शामिल है।
- इस शिक्षा पद्धति में अनुभवात्मक शिक्षण और कोडिंग को शामिल किया गया है, जिससे रचनात्मकता, समस्या-समाधान क्षमता और ज्ञान के वास्तविक दुनिया में अनुप्रयोग को बढ़ावा मिलता है।
- इस शिक्षा प्रणाली में स्मार्ट लर्निंग के लिए प्रौद्योगिकी को एकीकृत किया गया है, जिससे डिजिटल शिक्षा, एआई आधारित मूल्यांकन, और सहभागी शिक्षण अनुभवों में सुधार होता है।
- इसके अंतर्गत उच्च शिक्षा में बहु-विषयक डिग्री, अनेक निकास विकल्प और शैक्षणिक चयन में लचीलापन लाकर शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और प्रगति को बढ़ावा देना है।
- यह शिक्षा नीति शिक्षक प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक विकास को मजबूत बनाती है, जिससे शिक्षकों में निरंतर कौशल वृद्धि होती रहे और उन्हें सभी प्रकार के आधुनिक शिक्षण उपकरण मिलते रहें।
- यह एजुकेशन पॉलिसी समान पहुंच और नीति समर्थन के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) के लिए समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देती है।
- यह शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय मानकों की “परख” के साथ स्थापना करती है, जिससे एक समान मूल्यांकन ढांचा सुनिश्चित होता है और साथ ही यह शिक्षा को भारतीय संस्कृति और भारतीय लोकाचार के मूलरूप से जोड़े रखती है।
- यह शिक्षा प्रणाली बहुभाषिकता और भारतीय भाषाओं पर जोर देती है, इसके साथ ही यह नीति सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देते हुए क्षेत्रीय भाषाओं को सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पाँच मुख्य स्तंभों पर आधारित है – पहुंच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही। ये सिद्धांत शिक्षा में अंतर को कम करने, उसे अधिक समावेशी बनाने, और छात्रों को 21वीं सदी के आवश्यक कौशल विकसित करने के उद्देश्य से तैयार किए गए हैं।
पहुंच
सभी बच्चों को, उनके लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्थान या जाति की परवाह किए बिना, प्राथमिक शिक्षा तक समान और गुणवत्तापूर्ण पहुंच सुनिश्चित करना।
समानता
प्रत्येक विद्यार्थी को व्यक्तिगत सहयोग और अनुकूलित शिक्षण के माध्यम से शिक्षा में समान अवसर प्रदान करना।
गुणवत्ता
सभी छात्रों को उनके स्थान और स्थिति की परवाह किए बिना उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराना।
सामर्थ्य
3 से 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य बनाना, और उन्हें ज़रूरत के अनुसार पूर्ण सहयोग देना।
जवाबदेही
समग्र शिक्षा के लिए स्पष्ट दिशा और रूपरेखा प्रदान करना। शिक्षा प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों, जिलों और स्कूलों को सौंपना, ताकि शैक्षिक परिणाम बेहतर हों।
नई 5+3+3+4 शैक्षिक संरचना को समझना
अब पुरानी 10+2 प्रणाली की जगह 5+3+3+4 मॉडल ने ले ली है। यह एक नया दृष्टिकोण है, जो कि वैश्विक श्रेष्ठ प्रथाओं और बाल मनोविज्ञान के अनुरूप बनाया गया है। लेकिन छात्रों के लिए इसका असली मतलब क्या है?
आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
चरण | अवधि | आयु वर्ग | कौन शामिल है? | इस चरण में क्या होता है? |
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बुनियादी चरण | 5 वर्ष | 3 से 8 वर्ष | तीन वर्ष की प्री-स्कूल/आंगनवाड़ी शिक्षा + कक्षा 1 और कक्षा 2 |
इस चरण में रटकर याद करने के बजाय खेल-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षण पर ज़ोर दिया गया है। इस आयु में बच्चे कहानियों, संगीत, गति और सहभागिता से जुड़ी गतिविधियों के माध्यम से सबसे बेहतर सीखते हैं। इसमें भाषा विकास, मोटर कौशल और सामाजिक संपर्क को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे बच्चों के लिए औपचारिक स्कूली शिक्षा में सहजता से बदलाव सुनिश्चित हो सके। |
तैयारी चरण | 3 वर्ष | 8 से 11 वर्ष | कक्षा 3 से 5 | इस चरण में बच्चे विषयों की औपचारिक पढ़ाई शुरू करते हैं, लेकिन इसमें खोज कर सीखने और इंटरैक्टिव कक्षा के अनुभवों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसमें शिक्षण के तरीके रोचक बनाए जाते हैं, जिसमें खेल-आधारित और व्यावहारिक गतिविधियों के माध्यम से बच्चों में भाषा, संख्यात्मकता और विश्लेषणात्मक कौशल का विकास किया जाता है। |
मध्य चरण | 3 वर्ष | 11 से 14 वर्ष | कक्षा 6 से 8 |
यह बदलाव चरण है, जिसमें सभी छात्र खेल-आधारित लर्निंग से लेकर आलोचनात्मक सोच और विषयों के गहरे ज्ञान की ओर बढ़ते हैं। इस चरण में विशेष रूप से निम्न बातों पर जोर दिया जाता है:
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माध्यमिक चरण | 4 वर्ष | 14 से 18 वर्ष | कक्षा 9 से 12 (दो भागों में: कक्षा 9-10 और कक्षा 11-12) | यह चरण छात्रों को उच्च शिक्षा और करियर के लिए तैयार करता है, जिसमें गहन अवधारणाओं की स्पष्टता, बहु-विषयक शिक्षा, आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस प्रणाली के तहत, छात्रों को विषय चुनने में अधिक लचीलापन मिलता है, जिससे वे अपनी रुचियों और करियर आकांक्षाओं के अनुसार अपने सीखने के मार्ग को अनुकूलित कर सकते हैं। |
पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि का रूपांतरण
इस नीति के लागू होने के साथ ही भारत में शिक्षा बोर्ड रटने की पद्धति को छोड़कर कौशल-आधारित और सहभागितापूर्ण शिक्षा की ओर बढ़ रहा है। यहां बताया गया है कि इस शिक्षा नीति की नई शैक्षिक संरचना पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति को कैसे बदलती है:
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1. समग्र और एकीकृत शिक्षण
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 का उद्देश्य छात्रों के दिमाग में केवल तथ्यों को भरने के बजाय सीखने को मज़ेदार, सार्थक और संपूर्ण बनाना है। इसका एक बड़ा बदलाव भारी पाठ्यक्रम को कम कारण के साथ–साथ शिक्षा की केवल मूल आवश्यकताओं पर ध्यान देना है। इसका यह मतलब है कि इस शिक्षा नीति में छात्रों को अनगिनत जानकारियाँ रटनी नहीं पड़ती, बल्कि वे जो सीख रहे हैं उसे वास्तव में समझ सकते हैं, उसका विश्लेषण कर सकते हैं और उस पर चर्चा भी कर सकते हैं।
एनईपी 2020 की नई संरचना की एक और महत्वपूर्ण खासियत है इसका लचीलापन। इसके अंतर्गत छात्र अंतःविषय अध्ययन कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि वे कठोर विषयों के दायरे में नहीं बंधेंगे। विज्ञान पसंद है, लेकिन संगीत का भी शौक है? मनोविज्ञान के साथ-साथ अर्थशास्त्र का भी अध्ययन करना चाहते हैं। तो अब यह संभव है! यह समग्र शिक्षण दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि सीखना केवल परीक्षाओं के लिए नहीं है, बल्कि वास्तविक दुनिया के कौशल और रुचियों को विकसित करने के लिए है।
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2. अनुभवात्मक शिक्षण
यह शिक्षा नीति सीखने के तरीके को रटने से हटाकर वास्तविक दुनिया के अनुभवों पर केंद्रित करती है। इस शिक्षा नीति में पाठ्य पुस्तकों में अवधारणाओं के बारे में सिर्फ़ पढ़ने के बजाय, छात्रों को कुछ करने को मिलता है, चाहे वह व्यावहारिक गतिविधियाँ हों, परियोजनाएँ, प्रयोग या व्यावहारिक अनुप्रयोग हों।
इस शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत गणित में केवल सूत्रों को याद करने के बजाय, छात्र ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर सकते हैं जो उन अवधारणाओं को वास्तविक जीवन की समस्याओं से जोड़ते हैं। विज्ञान की कक्षाओं में ऐसे प्रयोग शामिल हो सकते हैं जो वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों की नकल करते हैं। यहाँ तक कि इतिहास और भूगोल जैसे विषयों को भी फील्ड ट्रिप, रोल-प्लेइंग या केस स्टडी के ज़रिए इंटरैक्टिव बनाया जा सकता है।
जब छात्र अवधारणाओं का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं, तो वे उन्हें बेहतर समझते हैं, उन्हें लंबे समय तक याद रखते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात, वे सीखने की प्रक्रिया का आनंद लेते हैं।
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3. व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण
एनईपी 2020 व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाती है, जिससे यह सीखने का एक मुख्य हिस्सा बन जाती है। इस शिक्षा नीति में मिडिल स्कूल से ही छात्रों को कोडिंग, बढ़ईगीरी, कुम्हारी, बागवानी, उद्यमिता जैसी विभिन्न व्यावसायिक कौशलों से परिचित कराया जाता है। यह शिक्षा प्रणाली सुनिश्चित करती है कि सीखना केवल सैद्धांतिक ही नहीं बल्कि व्यावहारिक भी हो, जिससे छात्र वास्तविक दुनिया के करियर के लिए बेहतर रूप से तैयार हो सकें।
एनईपी 2020 का एक और बढ़िया पहलू 10-दिन की बैगलेस अवधि है। इस दौरान छात्र अपनी किताबें एक ओर रखकर व्यावसायिक प्रशिक्षण में भाग लेते हैं। वे कार्यशालाओं में जा सकते हैं, स्थानीय व्यवसायों में इंटर्नशिप कर सकते हैं, या कारीगरों और उद्योग विशेषज्ञों से सीधे सीख सकते हैं। यह न केवल कक्षा में सीखने की एकरसता को तोड़ता है बल्कि छात्रों को आरंभिक स्तर पर ही विभिन्न करियर विकल्पों को तलाशने का अवसर भी देता है।
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4. फ़ाउंडेशनल लिटरेसी और न्यूमरेसी (एफएलएन) पर विशेष ध्यान
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 फ़ाउंडेशनल लिटरेसी और न्यूमरेसी (एफएलएन) को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है, जिसका उद्देश्य है कि 2025 तक हर प्राथमिक विद्यालय का बच्चा पढ़ने, लिखने और बुनियादी गणित में दक्ष हो जाए।
इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए फ़ाउंडेशनल लिटरेसी और न्यूमरेसी मिशन शुरू किया गया है। यह मिशन प्रारंभिक बाल शिक्षा को सशक्त बनाने, शिक्षकों को प्रशिक्षण देने, और रटने की बजाय कहानियों, खेलों तथा सहभागिता-आधारित गतिविधियों के ज़रिए लर्निंग को मज़ेदार, व्यावहारिक और प्रभावी बनाने पर केंद्रित है।
विचार सरल है – यदि बच्चों को शुरू से ही एक मजबूत आधार मिलता है, तो उन्हें बाद में जटिल विषयों को समझने में बहुत आसानी होगी।
मूल्यांकन और आकलन में सुधार
यहां वे सभी प्रमुख बदलाव हैं जो छात्रों के मूल्यांकन और आकलन प्रणाली में लागू होंगे:
- 1
बोर्ड परीक्षा में बदलाव
कक्षा 10 और 12 के लिए बोर्ड परीक्षाएं इस शिक्षा नीति में भी आयोजित की जाएंगी, लेकिन वे एक नई संरचना का पालन करेंगी। इसके अंतर्गत छात्रों को अब साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देने का अवसर मिलेगा, जिससे उन्हें अपने स्कोर में सुधार करने का मौका मिलेगा। इसमें परीक्षाओं को भी दो खंडों में विभाजित किया जाएगा, एक वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) और एक वर्णनात्मक (डिस्क्रिप्टिव) । यह बदलाव मूल्यांकन प्रक्रिया को अधिक संतुलित और प्रभावी बनाएगा।
- 2
परख: मूल्यांकन मानक निर्धारित करना
परख, जिसका अर्थ है समग्र विकास के लिए प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण, मूल्यांकन मानक निर्धारित करने की ज़िम्मेदारी निभाएगी। यह विभिन्न बोर्डों में परीक्षाओं की एकरूपता और गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी।
- 3
समग्र रिपोर्ट कार्ड
इस एजुकेशन पॉलिसी में रिपोर्ट कार्ड अब छात्र की प्रगति की पूरी तस्वीर प्रस्तुत करेंगे। सिर्फ़ अंकों के बजाय, इनमें कौशल, क्षमताएँ और समग्र विकास के बारे में भी जानकारी शामिल होगी, जिससे छात्र की योग्यता का अधिक व्यापक और संतुलित मूल्यांकन संभव हो सकेगा।
- 4
रचनात्मक मूल्यांकन (फॉर्मेटिव असेसमेंट)
फॉर्मेटिव असेसमेंट छात्रों की ताकत और सीखने की आवश्यकताओं को पहचानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। निरंतर मूल्यांकन केवल परीक्षाओं तक सीमित न रहकर, विभिन्न प्रतिभाओं और दक्षताओं को उजागर करने में मदद करेगा, जिससे शिक्षा और अधिक समावेशी तथा समग्र बनेगी।
शिक्षकों को सशक्त बनाना और शिक्षा में बदलाव लाना
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से न केवल छात्रों, बल्कि शिक्षकों को भी उत्कृष्टता की ओर प्रेरित और सशक्त बनाया जा सकता है। इसका तरीका इस प्रकार है:
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1. शिक्षक व्यावसायिक विकास
शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे अपने कौशल सुधार के लिए प्रशिक्षण, कार्यशालाओं और पाठ्यक्रमों के माध्यम से प्रतिवर्ष कम से कम 50 घंटे सतत व्यावसायिक विकास (सीपीडी) पूरा करें। इसके अंतर्गत 2030 तक, 4 वर्षीय बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) डिग्री शिक्षण के लिए न्यूनतम योग्यता बनेगी, जिससे एक सक्षम और बेहतर प्रशिक्षित शिक्षण कार्यबल सुनिश्चित होगा।
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2. नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड्स फॉर टीचर्स (एनपीएसटी)
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा 2021 तक शिक्षक शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा और 2022 तक शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी) स्थापित किए गए हैं। इन पहलों का उद्देश्य शिक्षक प्रशिक्षण को मानकीकृत करना, शिक्षण गुणवत्ता के लिए स्पष्ट मानक निर्धारित करना और पूरे देश में शिक्षक विकास में एकरूपता सुनिश्चित करना है।
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3. शिक्षक भर्ती और नियुक्ति
इस शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए इसे मजबूत किया जा रहा है। इसमें स्पष्ट दिशा-निर्देशों और योग्यता-आधारित चयन के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों को नियुक्त किया जाएगा। इसके साथ ही, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षकों की नियुक्ति पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, ताकि शैक्षिक असमानताओं को कम किया जा सके और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो सके।
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4. शिक्षक विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका
प्रौद्योगिकी शिक्षक विकास और छात्रों को सही सीख व ज्ञान देने की प्रणाली को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसमें शिक्षक प्रशिक्षण के लिए डिजिटल टूल्स और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का व्यापक उपयोग हो रहा है, जिससे सीखना अधिक सुलभ और प्रभावी बन रहा है। जैसे-जैसे शिक्षा डिजिटल माध्यमों की ओर बढ़ रही है, शिक्षकों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे ऑनलाइन सामग्री निर्माण में कुशल हों, ताकि छात्रों के लिए आकर्षक और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सामग्री प्रदान की जा सके।
बहुभाषिकता और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना
एनईपी 2020 भारतीय भाषाओं के महत्व पर भी प्रकाश डालती है और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करती है। यह कैसे संभव है:
तीन-भाषा सूत्र
तीन-भाषा सूत्र, भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए, बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देता है। इसके अंतर्गत छात्रों को तीन भाषाएं सिखाई जाती हैं: उनकी क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा, हिंदी या अंग्रेज़ी, और तीसरी भाषा, जो कोई अन्य भारतीय या विदेशी भाषा हो सकती है।
इस शिक्षा नीति में छात्र पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाती, जिससे उसके सीखने में लचीलापन बना रहता है। एनईपी 2020 इस बात पर ज़ोर देती है कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए, ताकि छात्र अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें और उनकी संवाद क्षमता और बौद्धिक कौशल बेहतर हो।
भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृति को बढ़ावा देना
यह एजुकेशन पॉलिसी भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति के बढ़ावा देने पर जोर देती है, ताकि देश की समृद्ध विरासत को संरक्षित किया जा सके और उसका उत्सव मनाया जा सके। भाषाई विविधता के विकास के लिए विभिन्न पहल की गई हैं, जिनमें संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध भाषाओं के लिए अकादमियों की स्थापना भी शामिल है। ये प्रयास सुनिश्चित करते हैं कि पारंपरिक ज्ञान, साहित्य और कलात्मक अभिव्यक्तियां संरक्षित रहें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचें।
संस्कृत और विदेशी भाषाएँ
संस्कृत को भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में विशेष महत्व दिया गया है। इसे शिक्षा के सभी स्तरों पर एक विकल्प के रूप में पेश किया जाता है। इसके अतिरिक्त, छात्रों को वैश्विक संचार क्षमताओं को विकसित करने और उनके कैरियर के अवसरों का विस्तार करने में मदद करने के लिए विदेशी भाषाओं को प्रोत्साहित किया जाता है।
मातृभाषा/स्थानीय भाषा शिक्षण का माध्यम
तीन-भाषा सूत्र, भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए, बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देता है। इसके अंतर्गत छात्रों को तीन भाषाएं सिखाई जाती हैं: उनकी क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा, हिंदी या अंग्रेज़ी, और तीसरी भाषा, जो कोई अन्य भारतीय या विदेशी भाषा हो सकती है।
इस शिक्षा नीति में छात्र पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाती, जिससे उसके सीखने में लचीलापन बना रहता है। एनईपी 2020 इस बात पर ज़ोर देती है कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए, ताकि छात्र अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहें और उनकी संवाद क्षमता और बौद्धिक कौशल बेहतर हो।
बेहतर शिक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 लर्निंग के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी के समावेश पर भी जोर देती है। जैसे-जैसे दुनिया डिजिटल होती जा रही है, शिक्षा क्षेत्र में भी डिजिटल उपकरणों को शामिल करने का समय आ गया है।
नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम (एनईटीएफ)
नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम (एनईटीएफ) एक स्वतंत्र संगठन है, जो यह प्रोत्साहित करता है कि प्रौद्योगिकी शिक्षा को बेहतर बनाने में कैसे मदद कर सकती है। यह एक ऐसा मंच है जहां विशेषज्ञ, शिक्षक और नीति निर्माता शिक्षा में प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए जानकारी साझा करते हैं। एनईटीएफ सरकार को अनुसंधान आधारित सुझाव देकर तकनीक-आधारित शिक्षा नीतियों को व्यावहारिक और प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और कंटेंट
शिक्षा के लिए एक मजबूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण आवश्यक है, ताकि शिक्षण संसाधनों तक निर्बाध पहुंच सुनिश्चित की जा सके। ओपन, अंतर-संचालित, और सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म में निवेश से छात्र और शिक्षक जुड़ सकते हैं, सहयोग कर सकते हैं, और बिना किसी बाधा के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
सभी भारतीय भाषाओं में उच्च-गुणवत्ता, उपयोगकर्ता-अनुकूल डिजिटल कंटेंट का निर्माण भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षण कंटेंट विविध भाषाई पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए समावेशी और सुलभ हो, जिससे डिजिटल शिक्षा अधिक प्रभावी और व्यापक बन सके।
ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म एवं उपकरण
स्वयं और दीक्षा जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म का विस्तार शिक्षकों को संरचित और उपयोग में आसान संसाधनों के साथ समर्थन देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। ये प्लेटफॉर्म व्यापक शैक्षिक सामग्री, इंटरैक्टिव कोर्स और प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान करते हैं, जो शिक्षकों को उनकी शिक्षण विधियों को बेहतर बनाने में सहायता करते हैं। इन उपकरणों को अधिक सुलभ बनाकर, शिक्षक बेहतर शिक्षण अनुभव प्रदान कर सकते हैं, जिससे छात्र उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल शिक्षा का लाभ उठा सकें।
वर्चुअल लैब्स
दीक्षा एवं स्वयंप्रभा जैसे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग वर्चुअल लैब विकसित करने के लिए किया जा रहा है, जिससे छात्र डिजिटल वातावरण में प्रयोग कर सकते हैं और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। ये वर्चुअल लैब्स भौतिक बुनियादी संरचना की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं, जिससे छात्रों को उनके स्थान की परवाह किए बिना व्यावहारिक शिक्षा सुलभ हो जाती है। इंटरैक्टिव सिमुलेशन और वास्तविक समय में समस्या समाधान अभ्यास को जोड़कर, ये विज्ञान और गणित जैसे विषयों में समझ और जुड़ाव को बढ़ाते हैं।
ऑनलाइन मूल्यांकन और परीक्षाएं
एनईटीएफ ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के मानकों को विकसित कर रहा है ताकि वर्चुअल शिक्षा में निरंतरता, गुणवत्ता और विश्वसनीयता सुनिश्चित हो सके। इन मानकों का उद्देश्य ऑनलाइन मूल्यांकन और परीक्षाओं को सुव्यवस्थित और सुलभ बनाना है। एनईटीएफ द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश संस्थानों को प्रभावी डिजिटल मूल्यांकन अपनाने में मदद करते हैं, जिससे छात्र मूल्यांकन में निष्पक्षता और सटीकता बनी रहती है।
उच्च शिक्षा में परिवर्तन
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 (एनईपी 2020) उच्च शिक्षा को कैसे प्रभावित करती है, यहाँ बताया गया है:
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1. बहु-विषयक और समग्र शिक्षा
उच्च शिक्षा कठोर विषय सीमाओं से हटकर अधिक बहु-विषयक और समग्र दृष्टिकोण की ओर बढ़ रही है। इसका अर्थ है कि विद्यार्थी अब केवल एक ही विषय तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि उन्हें अब एकीकृत शिक्षण अनुभव भी मिलेगा। उदाहरण के लिए, एक व्यवसाय का छात्र मनोविज्ञान और डेटा एनालिटिक्स भी पढ़ सकता है, जिससे उसे व्यापक दृष्टिकोण और वास्तविक समस्याओं को हल करने की क्षमता मिलेगी। यह दृष्टिकोण आलोचनात्मक सोच, अनुकूलनशीलता और समग्र शिक्षा को प्रोत्साहित करता है, जिससे वे विविध करियर विकल्पों और तेजी से बदलते रोजगार बाजार के लिए बेहतर रूप से तैयार हो सकें।
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2. संस्थागत पुनर्गठन और एकीकरण
इसका उद्देश्य ऐसे बड़े बहु-विषयक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों का निर्माण करना है जो एक ही परिसर में विविध विषयों की शिक्षा प्रदान करें। इस पुनर्गठन का उद्देश्य सीखने के अवसरों को बढ़ाना, विभिन्न विषयों में सहयोग को प्रोत्साहित करना और शोध क्षमताओं में सुधार करना है।
इसे प्राप्त करने के लिए, कॉलेजों को चरणबद्ध ढंग से स्वायत्तता प्रदान की जाएगी। शुरुआत में, उन्हें पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए शैक्षणिक स्वतंत्रता मिल सकती है। आगे चलकर, वे प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता भी प्राप्त कर सकेंगे, जिससे वे शासन, फैकल्टी भर्ती और फंडिंग जैसे निर्णय स्वयं ले सकें। यह चरण-दर-चरण दृष्टिकोण गुणवत्ता और जवाबदेही बनाए रखते हुए एक सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करेगा।
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3. नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ)
नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना भारत में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए की गई है। यह शैक्षणिक संस्थानों को अनुसंधान के लिए धन, संसाधन और आवश्यक समर्थन प्रदान करता है, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिले और देश की अनुसंधान पारिस्थितिकी प्रणाली मजबूत हो।
एनआरएफ विभिन्न विषयों में अनुसंधान परियोजनाओं को निधि देता है, यह सुनिश्चित करता है कि विद्वानों और वैज्ञानिकों को उनकी ज़रूरत के अनुसार वित्तीय सहायता मिले। यह विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए अवसंरचना में सुधार करता है और सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त, यह शोधकर्ताओं, सरकार और उद्योगों के बीच एक सेतु का काम करता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुसंधान के परिणाम राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप हों और उनका वास्तविक जीवन में उपयोग हो सके।
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4. उच्च शिक्षा के लिए नियामक प्रणाली
उच्च शिक्षा के लिए प्रस्तावित नियामक प्रणाली का उद्देश्य हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया (एचईसीआई) की स्थापना के माध्यम से शासन को सुव्यवस्थित करना और गुणवत्ता में सुधार करना है। यह एक एकल नियामक निकाय होगा जो वर्तमान में मौजूद कई एजेंसियों का स्थान लेगा और समग्र रूप से उच्च शिक्षा की निगरानी करेगा।
एचईसीआई निम्नलिखित विशेष शाखाओं के माध्यम से कार्य करेगा:
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नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी काउंसिल (एनएचईआरसी)
यह शैक्षणिक मानकों के पालन को सुनिश्चित करने और नियमन के लिए जिम्मेदार होगी।
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नेशनल एक्रेडिटेशन काउंसिल
(एनएसी)
यह संस्थानों के प्रत्यायन (एक्रेडिटेशन) पर केंद्रित होगी और सुनिश्चित करेगी कि वे गुणवत्ता मानकों को पूरा करें।
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जनरल एजुकेशन काउंसिल
(जीईसी)
यह सीखने के परिणामों के विकास, शैक्षणिक मानकों के निर्धारण और एक समान क्रेडिट प्रणाली को बढ़ावा देने का कार्य करेगी।
यह प्रणाली उच्च शिक्षा प्रशासन में पारदर्शिता, दक्षता और छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखती है।
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5. उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण
भारत विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने दरवाजे खोल रहा है, जिससे वे देश में अपने परिसर स्थापित कर सकें। इस कदम का उद्देश्य विश्व स्तरीय शिक्षा को भारतीय छात्रों के करीब लाना, वैश्विक शैक्षणिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और शोध सहयोग को बढ़ाना है। विदेशी संस्थान विशेष दिशानिर्देशों के तहत कार्य करेंगे ताकि शिक्षा की उच्च गुणवत्ता बनी रहे और सभी विदेशी संस्थान भारत की शैक्षणिक संरचना के अनुरूप रहें।
इसके साथ ही, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) को विदेशों में कैंपस स्थापित करने की अनुमति दी गई है। इससे भारत का शैक्षणिक प्रभाव वैश्विक स्तर पर बढ़ेगा, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाओं को आकर्षित किया जाएगा, और भारत की स्थिति वैश्विक शिक्षा क्षेत्र में मजबूत होगी।
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6. स्नातक संरचना
एनईपी 2020 स्नातक शिक्षा के दृष्टिकोण में भी बदलाव लाता है। इसके अंतर्गत एक साल तक किसी विषय का अध्ययन करने वाले छात्र को सर्टिफिकेट दिया जाएगा, जबकि दो साल तक अध्ययन करने वाले छात्र को एडवांस डिप्लोमा प्राप्त होगा। इसमें तीन साल तक किसी विषय का अध्ययन पूरा करने पर बैचलर डिग्री दी जाएगी और चार साल तक अध्ययन पूरा करने पर बैचलर ऑफ रिसर्च की डिग्री प्रदान की जाएगी। इसका मतलब है कि इस एजुकेशन पॉलिसी में छात्र बीच में पढ़ाई रोककर बाद में फिर से शिक्षा जारी रख सकते हैं, क्योंकि उनके द्वारा पूरे किए गए पाठ्यक्रमों के क्रेडिट सुरक्षित रहेंगे।
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7. क्रेडिट ट्रांसफर के साथ पाठ्यक्रम में लचीलापन
एनईपी 2020 के तहत जारी एक और रणनीति है क्रेडिट ट्रांसफर, जो छात्रों को निरंतर और उनकी जरूरत और समय के अनुसार सीखने अर्थात शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान करती है। अब छात्र अपनी पसंद के विषयों को अपनी इच्छानुसार स्तर और विशेषज्ञता के अनुसार आगे बढ़ा सकेंगे। इसके साथ ही, वे एक संस्थान से दूसरे संस्थान में अपने क्रेडिट ट्रांसफर करने की सुविधा भी प्राप्त करेंगे, जिससे उन्हें अध्ययन के लिए अधिक स्वतंत्रता और विकल्प मिलेंगे। उदाहरण के लिए, कोई छात्र एक संस्थान से आधारभूत जीव विज्ञान (फ़ाउंडेशनल बायोलॉजी) पढ़ना चाहता है, जबकि समुद्री जीव विज्ञान (मरीन बायोलॉजी) किसी दूसरे विशेष संस्थान से, तो इस शिक्षा नीति के अंतर्गत वह छात्र यह कार्य आसानी से कर सकता है। क्रेडिट ट्रांसफर सुविधा छात्रों को अनुभव प्राप्त करने और फिर उन्हें अपनी विशेषज्ञता पर निर्णय लेने के लिए एक वर्ष का अंतराल लेने की भी अनुमति देती है।
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8. 2035 तक 50% जीईआर
2018 में उच्च शिक्षा में नामांकन दर 26.3% था। एनईपी का उद्देश्य उच्च शिक्षा में नामांकन को बढ़ाना है, जिसमें व्यावसायिक (वोकेशनल) पाठ्यक्रमों के लिए 3.5 करोड़ से अधिक अतिरिक्त सीटें जोड़ी जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप, 2035 तक उच्च शिक्षा में ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) 50% तक पहुंच जाएगा।
वयस्क शिक्षा और आजीवन शिक्षण
वयस्क शिक्षा और आजीवन शिक्षण को भी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 (एनईपी 2020) में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यह शिक्षा नीति इस पहलू का ध्यान निम्नलिखित तरीकों से रखती है:
1. वयस्क शिक्षा के लिए रूपरेखा
वयस्क शिक्षा केवल सीखने के बारे में नहीं है, बल्कि यह व्यक्तियों को उन विभिन्न कौशल से सशक्त बनाने के बारे में है जिनकी उन्हें सफल होने के लिए आवश्यकता है। वयस्क शिक्षा की इस रूपरेखा में कई प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं:
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बुनियादी साक्षरता और गणित कौशल
यह सुनिश्चित करना कि वयस्क पढ़ना, लिखना और बुनियादी गणना करने में सक्षम हों, जो उनके दैनिक जीवन के लिए आवश्यक है।
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व्यावसायिक कौशल विकास
नौकरी से संबंधित कौशल प्रदान करना, जिससे नौकरी प्राप्त करने और करियर में आगे बढ़ने की संभावनाएं बेहतर हों।
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सतत शिक्षा
उन्नत पाठ्यक्रमों, पेशेवर प्रशिक्षण और कौशल वृद्धि के माध्यम से आजीवन सीखने की लगन को प्रोत्साहित करना।
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महत्वपूर्ण जीवन कौशल
समस्या-समाधान, संवाद क्षमता, वित्तीय साक्षरता, और डिजिटल कौशल सिखाना ताकि वयस्क आधुनिक दुनिया में आत्मविश्वास से जीवन जी सके।
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मूल शिक्षा
उन लोगों के लिए प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के अवसर प्रदान करना जिनकी औपचारिक शिक्षा किसी भी कारणवश छूट गई हो।
ये सभी तत्व मिलकर वयस्क शिक्षा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण बनाते हैं, जो व्यक्तियों को अधिक आत्मनिर्भर और अनुकूल बनने में मदद करता है।
2. बुनियादी ढांचा और संसाधन
वयस्क शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाने के लिए मौजूदा शैक्षणिक बुनियादी ढांचे का पुनः उपयोग किया जा सकता है। स्कूलों और स्कूल परिसरों को नियमित कक्षाओं के बाद वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे कक्षाओं, प्रयोगशालाओं और अन्य सुविधाओं का अधिकतम लाभ उठाया जा सके। सार्वजनिक पुस्तकालय भी मूल्यवान शिक्षण केंद्रों के रूप में काम करते हैं, एक शांत स्थान, पुस्तकों तक पहुंच, डिजिटल संसाधन और यहां तक कि समुदाय द्वारा संचालित कार्यशालाएं प्रदान करते हैं। इन स्थानों का अधिकतम उपयोग करके, वयस्क शिक्षार्थियों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए किफायती, सुविधाजनक और सहयोगी वातावरण मिलता है जिसमें वे अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं।
3. समुदाय और स्वयंसेवकों की भूमिका
वयस्क शिक्षा में समुदाय की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। स्थानीय पढ़े-लिखे नागरिकों और हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशन (एचईआई) को साक्षरता शिक्षकों के रूप में प्रोत्साहित किया जाता है ताकि शिक्षा अधिक व्यवहारिक और सुलभ बन सके। स्थानीय स्वयंसेवक, शिक्षक और कॉलेज के छात्र कक्षाएं लेकर, मार्गदर्शन देकर और वास्तविक जीवन का ज्ञान साझा करके योगदान दे सकते हैं। यह न केवल सामुदायिक बंधनों को मजबूत करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि वयस्क शिक्षार्थियों को एक परिचित और सहायक वातावरण में उनकी ज़रूरतों के अनुरूप शिक्षा मिले।
4. वयस्क शिक्षा में प्रौद्योगिकी
प्रौद्योगिकी वयस्क शिक्षा को अधिक सुलभ, लचीला और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। समर्पित शैक्षिक टीवी चैनल दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले शिक्षार्थियों तक गुणवत्ता युक्त जानकारी पहुंचाने का एक प्रभावशाली माध्यम बन रहे हैं। ऑनलाइन पुस्तकें और डिजिटल संसाधन वयस्कों को अपनी गति से अध्ययन करने की अनुमति देते हैं। इसके अतिरिक्त, आईसीटी से सुसज्जित पुस्तकालय और वयस्क शिक्षा केंद्र लर्निंग को बढ़ाने के लिए इंटरनेट एक्सेस, ई-लर्निंग मॉड्यूल और इंटरैक्टिव टूल प्रदान करते हैं। इस तरह प्रौद्योगिकी के एकीकरण से वयस्क शिक्षा अधिक रोचक, समावेशी और प्रभावी बनती है।
लागू करने की रणनीतियां और चुनौतियाँ
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू करने की कुछ रणनीतियाँ नीचे दी गई हैं:
केन्द्रीय और राज्य सरकारों की भूमिका
एनईपी 2020 को लागू करना केंद्र और राज्य सरकारों की एक साझा जिम्मेदारी है।
- केंद्र सरकार समग्र रूपरेखा और नीतियाँ निर्धारित करती है, जबकि राज्य सरकार उन्हें अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करती है।
- मिनिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट (एमएचआरडी), जिसे अब शिक्षा मंत्रालय के रूप में जाना जाता है, राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा नीति की देखरेख करता है।
- सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन (सीएबीई) केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करता है।
- नेशनल काउंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) पाठ्यक्रम दिशानिर्देश तैयार करता है, जबकि स्टेट काउंसिल्स ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (सीएसईआरटी) उन्हें क्षेत्रीय संदर्भों के लिए अनुकूलित करती है।
यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण पूरे देश में शिक्षा नीति के सफल और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है।
चरणबद्ध लागू करना
एनईपी 2020 कोई रातों–रात होने वाला बदलाव नहीं है। इसके सुचारू परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए इसे कई चरणों में लागू किया जाएगा। सरकार ने इस एजुकेशन पॉलिसी को एक चरण-दर-चरण लागू करने की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत बचपन की शिक्षा और पाठ्यक्रम में बदलाव जैसे मूलभूत सुधारों से होगी, उसके बाद स्कूल और उच्च शिक्षा में संरचनात्मक समायोजन किया जाएगा। यह चरणबद्ध दृष्टिकोण बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम अपडेट के लिए समय देता है, जिससे परिवर्तन अधिक प्रभावी और प्रबंधनीय हो जाता है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
एनईपी 2020 की व्यापक प्रशंसा हुई है, लेकिन इसे विद्वानों और शिक्षाविदों की आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है।
एक मुख्य चिंता इस शिक्षा नीति के लागू करने की गति है। कई लोग मानते हैं कि इस नीति को बिना पर्याप्त तैयारी के जल्दबाजी में लागू किया जा रहा है, खासकर शिक्षक प्रशिक्षण और अवसंरचना के संदर्भ में। इसके अंतर्गत शिक्षा तक समान पहुंच को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इस पॉलिसी में डिजिटल शिक्षा पर ज़ोर दिया गया है, जिससे विशेषाधिकार प्राप्त और वंचित छात्रों के बीच असमानता बढ़ने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, तीन-भाषा सूत्र ने भी विवाद खड़ा किया है, क्योंकि कुछ राज्य इसे अपनी क्षेत्रीय आवश्यकताओं के विपरीत भाषा संबंधी प्राथमिकताएँ थोपने वाला मानते हैं।
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एक्स्ट्रामार्क्स एक तकनीक-संचालित प्लेटफ़ॉर्म है जो स्कूलों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के लिए व्यापक शैक्षिक समाधान प्रदान करता है। हमारे उपकरण – स्मार्ट क्लास प्लस, असेसमेंट सेंटर, लर्निंग ऐप और पैरेंट ऐप — आपके स्कूलों को एनईपी 2020 के मूल्यांकन परिवर्तनों के अनुकूल होने में मदद करते हैं।
असेसमेंट सेंटर शिक्षकों को विविध मूल्यांकन विधियों के साथ सहायता करता है, जबकि लर्निंग ऐप छात्रों को घर और स्कूल दोनों जगह सीखना जारी रखने में सक्षम बनाता है। स्मार्ट क्लास प्लस इंटरैक्टिव डिजिटल अनुभवों के साथ पारंपरिक शिक्षण को बढ़ाता है, जिससे छात्रों की भागीदारी और समझ में सुधार होता है। एनईपी 2020 के अनुरूप कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध, एक्स्ट्रामार्क्स का लक्ष्य समग्र शिक्षण अनुभव को बनाना है।
निष्कर्ष
एनईपी 2020 के सिद्धांतों को जीवन में लाने में स्कूल और शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके दृष्टिकोण को अपनाकर और प्रभावी कार्यान्वयन की दिशा में काम करके, यह एक अधिक समावेशी और भविष्य के लिए तैयार शिक्षा प्रणाली को उचित आकार दे सकता है। यदि आपके पास एनईपी 2020 के बारे में अनुभव, जानकारियाँ या प्रश्न हैं, तो उन्हें कृपया हमारे साथ साझा करें।
Last Updated on June 6, 2025
Reviewed by

Prachi Singh | VP - Academics
Prachi Singh is a highly accomplished educationist with over 16 years of experience in the EdTech industry. Currently, she plays a pivotal role at Extramarks, leading content strategy and curriculum development initiatives that shape the future of education...read more.

