Important Questions for CBSE Class 12 Hindi Antra Chapter 18 Jaha Koi Wapsi Nahi
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Chapter 18 of the Antra textbook for Class 12 Hindi Jaha koi wapsi nahi is written by Shri Nirmal Verma. This story was picked from the compilation of writings inspired by the journey. In it, the author addresses environmental and development concerns, highlighting the torment of human beings due to displacement caused by environmental damage.
According to the author, there must be an equilibrium between the protection of the environment and reckless development since otherwise, both environmental problems and displacement would be constantly caused by development. And man will be compelled to lead his life despite being uprooted from his community, culture, and environment.
CBSE Class 12 Hindi Antra Important Questions Chapter 18 Jaha Koi Wapsi Nahi
Study Important Questions for Class 12 Hindi Chapter – 18 जहां कोई वापसी नहीं
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
- खैरवार जाती के राजाओं का शासन कब रहा?
उत्तर: खैरवार जाती के राजा सन 1926 से पूर्व सिंगरौली में शासन किया करते थे।
- लोकायन संस्था किस उद्देश्य से सिंगरौली में गई थी?
उत्तर: ‘लोकायन’ दिल्ली की एक संस्था थी जो सिंगरौली के विकास के लिए उसका अन्वेषण करने के लिए आई थी|
- अमझार गाँव किस राज्य में आता था?
उत्तर: अमझार गाँव, मध्यप्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र में आता था।
- पुरानी दंतकथा के अनुसार सिंगरौली का नाम क्या था?
उत्तर: पुरानी दंतकथा के अनुसार सिंगरौली का नाम ‘ सृंगावली ‘ था। यह नाम एक पर्वतमाला के नाम पर पड़ा था|
- अमरौली प्रोजेक्ट का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर: अमरौली प्रोजेक्ट को क्षेत्र के विकास के नाम पर शुरू किया गया था| लेकिन विकास के नाम पर किये गए औद्योगीकरण के नाम पर नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए गए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
- औद्योगीकरण से आप क्या समझते हो?
उत्तर: आधुनिकतम तकनीक और उपकरणों की सहायता से किया जाने वाला विकास कार्य औद्योगीकरण कहलाता है|
- अमझर गाँव वालो ने किस तरह से विरोध किया?
उत्तर: लेखक के अनुसार किसी बात का विरोध करने के लिए अहिंसक तरीके से मौन रह कर सत्य का आग्रह करना मूक-सत्याग्रह होता है| अमझर गाँव वालो ने भी औद्योगीकरण का विरोध मूक-सत्याग्रह करके किया|
- लेखक ने गाँव वालो की जीवन शैली के विषय में क्या लिखा है?
उत्तर: गाँव में एक पवित्र खुलापन था| इसके अंतर्गत सभी संबंधो को पवित्र रखा जाता था लेकिन सभी को खुलकर बोलने का अधिकार था| लेखक ने अमझर गाँव के लोगो की जीवन शैली को भी इस खुलेपन के अंतर्गत ही रखा है|
- लेखक ने गाँव में खेती करती हुई स्त्रियों के विषय में क्या कहा है?
उत्तर: लेखक जब बहुत हिम्मत करके गाँव के अन्दर गया तो उसने देखा खेतों में बहुत सी स्त्रियाँ एक ही कतार में झुकी हुई हैं| वो सभी स्त्रियाँ धान के खेत में धान के पौधे रौप रहीं थी| ये सभी स्त्रियाँ सुन्दर और सुडौल थी, इनकी काली टाँगे धुप में दमक रहीं थी| इन्होने अपने सिर पर किष्तिनुमा हैट पहनी हुई थी| जैसी हैट फिल्मो में चीनी और वियतनामी स्त्रियों के सर पर दिखाई जाती हैं|
- “संपदा अभिशाप हैं” इसका तात्पर्य क्या है?
उत्तर: लेखक के अनुसार यदि किसी क्षेत्र में अधिक खनिज संपदा होती हैं, तो उस खनिज संपदा को पाने के लिए उस क्षेत्र को उजाड़ दिया जाता है| वहाँ के प्राकृतिक संतुलन को भी बर्बाद कर दिया जाता है| इस तरह किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली खनिज संपदा ही उस क्षेत्र की बर्बादी का कारण बन जाती है|
लघु उत्तरीय क्षेत्र (3 अंक)
- लेखक ने आम के पेड़ों के विषय में क्या कहा है?
उत्तर: सिंगरौली क्षेत्र में एक गाँव है अमझर| अमझर नाम दो शब्दों के मेल से बना है, पहला आम और दूसरा आम का पक कर झरना| इस गाँव में भी आम के बहुत से बाग़ हैं, जिनके कारण इस गाँव का नाम अमझर पड़ा है| जबसे ये घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के तहत नवागाँव के कई गाँवों को ख़त्म कर दिया जायेगा तो अमझर गाँव के आम के पेड़ों की हरयाली भी ख़त्म हो गयी है| जैसे उन्हें पता चल गया हो कि अब इस गाँव को भी उजाड़ दिया जायेगा| प्रतीत हो रहा था कि जैसे इन पेड़ों ने ये सोचकर अपनी हरियाली को त्याग दिया है कि जब इस गाँव में कोई इंसान नहीं रहेगा तो उनकी हरियाली भी किसी काम की नहीं रहेगी|
- लेखक ने पेड़ो और आदमियों के रिश्ते के बारें में क्या कहा हैं?
उत्तर: मनुष्य और प्रकृति का सम्बन्ध पुरातन काल से रहा है| मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीता है तो प्रकृति भी उसे बहुत कुछ देती है| और जब मनुष्य निराश या दुखी होतें हैं तो इसका असर वहाँ की प्रकृति पर भी दिखाई देता है| पेड़ों का मानव सभ्यता की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है| इसलिए मनुष्य भी पेड़ों का लालन-पालन करते आये हैं| यदि किसी क्षेत्र से मनुष्य चला जायेगा तो उस क्षेत्र के पेड़ भी कैसे प्रसन्न रह सकतें हैं| इसलिए जब किसी क्षेत्र से मनुष्य चले जातें हैं तो वहाँ के पेड़ भी अपनी हरियाली को त्याग देते हैं|
- इंसानी सभ्यता के लिए प्रकृति, संस्कृति कैसे जरूरी है?
उत्तर: प्रकृति और संस्कृत का सम्बन्ध पुरातन काल से बहुत ही गहरा रहा है| प्रकृति के संरक्ष्ण में ही मानव सभ्यताओं ने जन्म लिया है और प्रकृति से ही इंसानों को पोषण भी मिला है| इसलिए इंसानी सभ्यताओं के संरक्षण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी बहुत ही आवश्यक है| संस्कृति का विकास, मानव सभ्यता का विकास और प्रकृति आपस में जुडी हुई एक श्रंखला की तरह है| इसलिए विकास की दौड़ में आगे बढ़ते हुए भी इस श्रखंला की सभी कड़ियों में संतुलन बनाए रखना और उन्हें जोड़े रखना पड़ता है| यदि इस श्रंखला में कहीं भी असंतुलन पैदा होगा तो उसका सबसे बुरा असर मानव सभ्यता पर ही पड़ेगा|
- भारत और यूरोप की पर्यावरण को लेकर चिंताएं भिन्न हैं, कैसे ?
उत्तर: भारतीय लोगो के लिए प्रकृति उनकी संस्कृति और आस्था से भी जुडी है| इसलिए भारतीय संस्कृति में प्रकृति और मानव का संबंध भावनात्मक है| यहाँ प्रकृति और मानव के मध्य कमज़ोर होते सम्बन्ध को लेकर चिंतन है| जबकि यूरोप में प्रकृति और मानव के द्वारा उसके उपभोग के संतुलन को लेकर चिंता है| यूरोप की चिंता भूगोल विषयात्मक है|
- वर्तमान समय में पर्यायवारण पर सबसे प्रमुख संकट क्या हैं?
उत्तर: वर्तमान समय में पर्यावरण पर सबसे बड़ा संकट बढती जन्संख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए बढ़ता औद्योगीकरण है| औद्योगीकरण के नाम पर हरे-भरे वनों और उपजाऊ कृषि क्षेत्रों को नष्ट किया जा रहा है| इस कारण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है|
बढ़ते औद्योगीकरण से प्रदुषण भी बढ़ता जा रहा है| प्रदुषण का प्रभाव भोगोलिक सीमाओं तक ही सीमित ना रहकर वैश्विक होता है| और प्रदुषण का दुष्प्रभाव मानवों पर भी सीधा पड़ता है|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक )
- ‘ नए शरणार्थी ‘ से लेखक का क्या आशय हैं, स्पष्ट कीजिये?
उत्तर: ओद्योगिकीकरण के नाम पर बहुत से प्राकृतिक क्षेत्रों और गाँवों को उजाड़ा जा रहा है| जिस कारण इन क्षेत्रों से सभी लोग विस्थापित कर दिए जातें हैं| ये सभी लोग औद्योगिक विकास की कीमत अपने खेत घर और गाँव को खोकर चुकातें हैं| ये लोग दो बार विस्थापन का दर्द झेल चुकें हैं, एक बार भारत विभाजन के समय पर और अब औद्योगीकरण के नाम पर| औद्योगीकरण के कारण विस्थापित हुए इन लोगो को ही कवि ने “नए शरणार्थी” कहा है
- लेखक ने कितने तरह से विस्थापन के बारे में बताया हैं?
उत्तर: लेखक ने दो प्रमुख तरीकों से विस्थापन को बताया हैं, जो निम्न प्रकार हैं –
- पहला विस्थापन वो होता है जो लोगो को प्राकृतिक आपदाओं के कारण झेलना पड़ता है| लेकिन ये विस्थापन अस्थायी होता है| इसमें लोगो को कुछ समय के लिए नुकसान उठाकर विस्थापित होना पड़ता है| लेकिन कुछ समय बाद वो लोग अपनी धरती और गाँव को पुन: प्राप्त करके पहले जैसा बना दते हैं|
(2) दूसरे प्रकार का विस्थापन औद्योगीकरण के कारण होता है| ये विस्थापन स्थायी विस्थापन हैं| क्योंकि इसमें लोग दुबारा अपने गाँव और ज़मीन को प्राप्त नहीं कर पाते| औद्योगीकरण से प्राकृतिक क्षेत्र पर जो प्रभाव पड़ता है वो बहुत बुरा और स्थायी होता है| औद्योगीकरण के कारण विस्थापित लोगो को अपने लिए दूसरा स्थान ही तलाशना पड़ता है| इसके कारण लोग अपनी जड़ों से पूरी तरह से टूट जातें हैं|,
- स्वतंत्रता के बाद भारत के साथ सबसे दुखद क्या हुआ? संक्षिप्त विवरण दीजिये|
उत्तर: लेखक के अनुसार स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने तीव्र औद्योगीकरण का मार्ग चुना| लेकिन इस तेज़ औद्योगीकरण ने भारत की प्रकृति, पर्यावरण, और वनों को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचा दिया| स्वतंत्रता के बाद अधिकतर का ये ही मानना था कि भारत के पास भरपूर खनिज संसाधन और मानव श्रम है तो भारत को औद्योगीकरण की तरफ ध्यान देना चाहिए| हम लोग पश्चिमी देशों के औद्योगीकरण की नक़ल कर रहें थे| लेकिन इस औद्योगीकरण से हमने बहुत कुछ खो दिया| हम पश्चिम की नक़ल में विवेकहीन होकर औद्योगीकरण की तरफ भाग लिए| लेकिन हमने प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर औद्योगीकरण और विकास की कोई योजना नहीं बनाई, जो बनाई जा सकती थी| शायद ऐसी कोई योजना बनाकर काम करते तो विकास के पथ पर भी आगे बढ़ते और प्रकृति के साथ संतुलन भी बना पाते| लेकिन भारत ने स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण और विकास की अंधी दौड़ में मानव सभ्यता और प्रकृति के मध्य के संतुलन को पूरी तरह से नष्ट कर दिया| लेखक ने इसे ही स्वतंत्रता के बाद भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी कहा है|
- अंग्रजी राज भारत को अपनी संस्कृति में पूरी तरह नहीं सींच पाया| क्यों?
उत्तर: अंग्रेजो ने भारत को अपनी सांस्कृतिक कोलोनी बनाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन वो ऐसा कर पाने में पूरी तरह असफल रहे| उन्होंने इसके लिए मतान्तरण, शिक्षा पद्धति में बदलाव, जैसा हर प्रकार का प्रयास किया, लेकिन वो फिर भी भारतीओं पर अपनी संस्कृति नहीं थोप पाए| क्योंकि भारत की संस्कृति किसी संग्राहलय में जमा नहीं थी ना ही ये संस्कृति किसी शोध संस्थान के द्वारा संचालित थी| भारतीयों की संस्कृति यहाँ के मानव समाज के मनो में है| यहाँ के मानवों का अपनी धरती, वन, पेड़ और प्रकृति से एक भावनात्मक संबंध पुरातन काल से चला आ रहा है| जबकि यूरोप में प्रकृति को एक संसाधन के रूप में देखतें हैं| प्रकृति उनके लिये एक शोध विषय मात्र है| भारतीय जनमानस और प्रकृति का सम्बन्ध एक अदृश्य लिपि के रूप में जन-जन में बसता है| इसलिए चाहे भारत में किसी ने भी शासन किया हो, वो भारतीय संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ने में असफल रहा है|
- लेखक निर्मल वर्मा का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए|
उत्तर: निर्मल वर्मा का जन्म 1929 को हुआ था| निर्मल वर्मा हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार थे| इन्होने ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ से इतिहास में एम. ए. किया और यहीं पर कुछ दिनों के लिए अध्यापन कार्य भी किया| 1959 में ये चेकोस्लोवाकिया के ‘प्राच्य- विद्या प्रग संस्थान’ के निमंत्रण पर वहाँ गये और चेक के उपन्यासों और कविताओं का उल्लेख किया| 1970 ये भारत वापस लौट आये| इन्होने हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओ में ही लेखन किया है| इन्होने हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया के अख़बारों के लिए यूरोप की राजनीतिक और संस्कृति पर अनेक लेख लिखे हैं| इनके द्वारा लिखे गए प्रमुख उपन्यास “परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गर्मियों में, बीच बहस में, वे दिन तथा अंतिम अरण्य” आदि हैं| “हर बारिश में , चीडो पर चांदनी तथा दुंध से उठती धुन” में आदि इनके प्रमुख यात्रा संस्मरण हैं| 1985 में इन्हें “कव्वा और काला पानी” के लिए साहित्य अकादमी पुरुष्कार से समानित किया गया| 2002 में इन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया| 2005 में इनकी मृत्यु हो गयी|