Important Questions for CBSE Class 12 Hindi Antra Chapter 19 Yathasmay Rochate Vishvam
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CBSE Class 12 Hindi Antra Important Questions Chapter 19 Yathasmay Rochate Vishvam
Study Important Questions for Class 12 Hindi Antra Chapter 19 – यथास्मै रोचते विश्वम्
- अफलातून ने संसार को क्या कहा था ?
अफलातून के अनुसार संसार असल की नकल है और यह कला की एक नकल है।
- अरस्तु ने मनुष्य के संबंध में क्या कहा है ?
अरस्तु के विचार के अनुसार मनुष्य को उसकी सीमाओं से बढ़कर देखने पर नकल -नवीस कला का खण्डन किया जाता है।
- यूनानी विद्वानों के बारे में क्या कहा गया है ?
यूनानी विद्वानों ने एक विश्व का मानचित्र बनाया जिसमें ग्रीस को केंद्रित किया गया था और बाकी यूरोप एवं एशिया के तत्कालीन ज्ञात स्थान दर्शाये गए थे।
- लेखक के अनुसार प्रजापति कौन होता है ?
लेखक ने प्रजापति को ईश्वर के तौर पे दर्शाय।
- “ हैमलेट “ का लेखक कौन हैं ?
विलियम शेक्सपियर के हैमलेट की रचना की है।
लघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक
- 17वीं और 20वीं सदी के प्रमुख कवियों के नाम लिखिए ।
17वीं और 20वीं में कई रचनाकार और कविओं का उल्लेख किया जाता है जिनमें कवि रविंद्रनाथ ठाकुर, वीरेश लिंगम, तमिल भारती, मलयायी वल्लतोल अदि रहे हैं। इन सभी लेखकों ने अंग्रेजी राज और सामंती अवशेषों पर अपने लेखो से प्रहार किया।
- 15वीं – 16वीं सदी के कवि गायकों के नाम लिखिए ।
हिंदी साहित्य के अतर्गत 15वीं – 16वीं सदी में कवि कश्मीरी ललद्यद, पंजाबी नमक, हिंदी सूरदास, मीराबाई, तुलसीदास, कबीर, बंगाली चंडीदास ,आदि गायकों ने अपनी भक्ति में जीर्ण मानव संबंधो के पिंजर को झकझोर दिया था।
- कवि कैसे अपनी रूचि के अनुसार विश्व को परिवर्तित करता है ?
कवि ने अपनी सोच के अनुसार विश्व को असंतुष्टि भरा दर्शाया है और यह भी बताया है की विश्व में व्यापक कुसंगतिया क्या है। यह इसलिए की मनुष्य समाज को और अच्छी तरह समझ। कवि ने अपनी कल्पना द्वारा संसार को एक नया रूप दिखाया एवं अधिक प्रभावशाली बनता है।
- लेखक द्वारा खींचे गए चित्र समाज की व्यवस्था से मेल खाते हैं । कैसे?
साहित्यिक रचनाओं के पीछे कवि के दूरदर्शिता का एक एहम कार्य रहा है क्योंकि लेखक जो रचनाएं करता है उसमें सामाजिक कुसंगति या तथ्यों पर आधारित होता है। इसमें साहित्यकार का वातावरण का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है, वह जो भी देखते अपनी समझ एवं कल्पना द्वारा साहित्य में दर्शाते है। इस कारण साहित्य समाज का दर्पण है और सभी भावों से मेल कहते हैं।
- साहित्य को कैसा होना चाहिए ?
साहित्य की रचना मनुष्य की सोच में तभी पैदा हुई जब उसने सोचने का प्रारम्भ किया। साहित्यिक रचनाओं में सामाजिक सुधार का उल्लेख होना ज़रूरी है। साहित्य में संबंध, कुरीति और असंगति के खिलाफ जिक्र होना चाहिए जहां सुधार की आशंखा रहे। साहित्य में समाज को समझ कर रचना करने की जरुरत है।
11.साहित्य की तुलना कृष्ण के शंख से करते हुए लेखक क्या कहते हैं?
पांचजन्य शब्द से सम्बोधित करके लेखक ने साहित्य को इसकी विशेषता का वर्णन किया है। यह कृष्ण के पांचजन्य शंख की विशेषता थी कि यदि इस शंख को एक स्थान से फूंके जाने पर पांच स्थान से ध्वनियाँ बहार निकलती थी। लेखक ने साहित्य को पांचजन्य शंख के समतुल्य देखता है जो अपने संघर्षो के सामने हर हुए इंसान को अपनी वाणी से जागृत करता है और एक नयी ऊर्जा उत्पन्न कर देता है। मनुष्य के मन में पांचजन्य निराशा, वेदना, हार इत्यादि भाव को साहित्य जड़ से उखाड़ सकता है। यह पांचजन्य आदि काल से मनुष्य की रक्षा कर रहा है। जो भाग्य के भरोसे बैठे हैं, उनका साहित्य का पांचजन्य उपहास करता है।
- साहित्यकार को सूक्ष्म दृष्टि का होना चाहिए। क्यों और कैसे?
प्रत्येक साहित्यकार के लिए सूक्ष्म दृष्टि का होना एक महत्वपूर्ण गुण माना जाता है। साहित्यकार का रचनात्मक और भावनात्मक गुणों का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। रचनात्मक गुण से ही साहित्यकार नई रचनाओं को रचता है। प्रत्येक साहित्यकार अपनी दूरदर्शी क्षमताओं से समाज में व्याप्त छोटी से छोटी समस्याओं को देखने की छमता रखता है । साहित्यकार का उद्देश्य अपनी नई रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त समस्याओं को उजागर या उसे दूर करने की प्रयत्न करता है । साहित्यकारों द्वारा रचित रचनाएं समाज में व्याप्त प्रत्येक समस्या की जड़ पर प्रहार करती तो है ही साथ ही साथ समाज में व्याप्त असंगतियों, कुरीतियों एवं बुराइयों को जड़ से समाप्त करने का प्रयत्न करता है। साहित्य से हम एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक मार्गदर्शन का कार्य करता रहेगा।
- समाज में साहित्य की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
साहित्य समाज का दर्पण होता है। भारतवर्ष में जैसे पुरोहित जनता का मार्गदर्शन का काम करते आए हैं एवं लोगों को उचित राह दिखाने का प्रयास किया है और लोगों को पूजा-पाठ के साथ-साथ जीवन में व्याप्त कष्टों का भी निवारण हेतु मार्गदर्शन किए हैं। वैसे ही साहित्य का साहित्यकार जनता को अपने संघर्षों के प्रति अपनी इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए दृढ़संकल्प के साथ उनसे लड़ने का उपदेश दिया है। रचनाएं समाज की धार्मिक भावना, भक्ति, समाज-सेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोचता का अनुसंधान करती है। यदि साहित्यकार या साहित्य, पुरोहित समान लोगों को मार्गदर्शन करने में सक्षम नहीं है तो उसे साहित्य कहने का कोई हक भी नहीं है।
- कवि की रचना, समाज में फैली कुरीतियों का हितैषी नहीं है। पाठ के आधार पर इस कथन के समर्थन में टिप्पणी करें।
कवि लेखक को कलालोक का वासी के रूप में देखते हैं और यही मानते हैं कि उसका नीव धरातल पर अच्छी तरह टिका हुआ है। साहित्यकार अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों, विसंगतियों से आहत होकर अपनी कल्पना शक्ति से ऐसे समाज की रचना करता है जो दूषित वातावरण से मुक्त है। साधारण से साधारण व्यक्ति भी ऐसे कुरीतियों एवं विसंगतियों से परिचित होता है। लेकिन यह उसे आसानी से देख नहीं पाता परंतु जब साहित्यकार उस विषय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रकाश डालता है तो उसके सामने समाज की अनेक विसंगतियां स्पष्ट रूप से वह देख पाता है। साहित्यकार को चाहिए कि अपनी रचना ऐसी रचे जिसे पाठक पढ़कर अपने को आत्मसात कर सके जो उसके उद्देश्य के केंद्र में रखकर रचा गया हो।
- साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन और कामवासना की पूर्ति करना नहीं है। टिप्पणी करें।
लेखक यह कहना चाहता हैं कि साहित्य केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है अपितु मनुष्य को मार्गदर्शन, जिजीविषा एवं आगे बढ़ते रहने की सही शिक्षा देना भी है। साहित्य का गौरवशील व महान इतिहास इस बात का प्रमाण है कि हमारी परंपराओं के समक्ष ऐसी कोई कला नहीं जिसका कोई उद्देश्य ना हो। हमारा साहित्य निराशा, हार जैसी भावों का निरस्त करता है और वह अपने समय के जंजाल में फस कर कहीं विलुप्त हो जाते हैं । ऐसी कला जो मनुष्य को मार्गदर्शन का कार्य ना करें, या दिशाहीन बना दे, उस कला की समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
- कवि को लेखक ने प्रजापति के समान क्यों कहा है?
कवि ने लेखक को प्रजापति के समान माना है। जिस तरह प्रजापति अपनी इच्छा के अनुसार संसार की संरचना करता है ठीक उसी प्रकार कवि अपनी कल्पनाशक्ति से संसार को बदलने का प्रयत्न करता है। लेखक प्रजापति एवं कवि को दुनिया में परिवर्तन लाने की शक्ति के रूप में देखता है। यही कारण है कि लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है। प्रजापति अपने अनुसार कवि भी संसार को बदलने की शक्ति रखता है। ठीक वैसे ही कवि अपनी रचित रचनाओं के माध्यम से सड़ी-गली परंपराओं और कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की शक्ति रखता है। प्रजापति के समान ही कवि में भी रचनात्मक शक्ति होती है जो अपने कलम के माध्यम से शब्दों में अवतरित होती है जो सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करता है। अपनी रचनाओं के माध्यम से ही कभी समाज में व्याप्त कुरीतियों को बदलने की सोच रखता है। जैसे प्रजापति अपनी शक्ति के माध्यम से संसार को बदल सकता है वैसे ही कभी अपने कलम के माध्यम से संसार को बदलने का प्रयत्न करता है।
- आदर्श पात्र और उनके गुणों को अपनी रचना में संग्रहित करने के पीछे कवि की चेष्टा क्या है?
दुर्लभ गुणों का समावेश रखने वाला मनुष्य एक रहे यह संभव नहीं होता। इस कारण ऐसा व्यक्ति ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता हालांकि एक साहित्यिक ही होता है जो अपनी रचना में ऐसे पात्र का निर्माण करे। ऐसे पात्र के पीछे मनोरंजन के उर्ध भी कई गहरे भाव होते हैं। एक मनुष्य अपने जन्म के वक़्त कुछ गुण साथ लता है पर आगे चलकर उसके अंदर कई सारे गुण उत्पन्न होते हैं। यही गुण समाज में लोगों के अंदर आदर्श बन कर रह जाता है। जैसे राम की कल्पना का कि हर घर में राम कॉल लक्ष्मण जैसे पुत्र , पति और मित्र हो। एक कवि इसी प्रकार सभी पत्रों में आदर्शवादी गुणों का निर्माण करता है।
- साहित्य मनुष्य को साहस देने के साथ-साथ उत्साह भी रखता है। कैसे?
साहित्य की रचना मनुष्य के अंदर भाव पैदा करता है। साहित्य की महत्वपूर्णता इसी में है की मनुष्य को ऊंचाई प्रदान कर सके। साहित्य के अंदर कई भाव हैं जिनमें उदासी कभी कभी प्रसंता में बदल जाती है। पुराने पारम्परिक सोच नै सोच से बदलते हैं। यह बदलाव मनुष्य के अंदर एक उत्साह उत्पन्न करता है। साहित्यिक रचनाओं में एक मनुष्य खुदको ढूंढ़ता है और किसी छिपे हुए किरदार में अपनी परछाई उसे मिल भी जाती है। एक लेखक की रचना में उसके द्वारा साहित्य का महत्व मनुष्यो में बहुत चाव से पढ़ा जाता है और हमेशा पढ़ा जाएगा।
- साहित्य मानवीय संबंधों से जुड़ा हुआ है। कैसे?
मनुष्य का जीवन उसके वातावरण पर निर्भर करता है जिसे हम समाज का रूप देते है। एक मनुष्य ही आगे चलकर लेखक या कवि बनता है और उसके जीवन भर की समझ को वह कागज़ पर उतारता है। मनुष्य का मनुष्य होने के पीछे का सबसे बड़ा महत्व उसकी सोचने की क्षमता है। इंसानी लगाव के उर्ध शायद कही भी नहीं है इस कारण कोई भी रचना समाज को केंद्र करके ही की जाती है। मनुष्य के सारे संबंधो का ही साहित्यिक दर्पण उसने लेख में मिलते हैं। शायद यही कारण है की लेखक के लिए सृजन करते वक़्त मनुष्य के विभिन्न रूप के प्रति चेतना होने की आवश्यकता रहती है। इस प्रकार साहित्य, समाज और मनुष्य हमेशा जोड़ में रहते हैं।
- समाज में 15वीं -16वीं सदी की भूमिका लिखिए।
भारत का सबसे महत्वपूर्ण समय 15वीं-16वीं सदी रहा हैं। इतिहास में इस समय की वर्णन उच्च कोटि पे मिलता है। यह वह समय है जब कविओं के अंदर तरह की बातें रचनाओं में बदलती गई। वह एक असंतोष, क्रोध, और दुख का समय था जहा शासकों के कारण भेद भाव की तुलना होने लगी और कई आडंबर उत्पन्न हुए। संत कविओं का उदय हुआ जिन्होंने लोगोंमें भक्ति और चेतना लाने का प्रयास किया। इस समय को भक्ति और मनुष्यता का काल मन जा सकता है। इन्ही रचनाओं के कारण जनता के अंदर प्रसन्नता एवं प्रेम के भाव का प्रसार हुआ। इन्होंने मनुष्य के जीवन को एक नया मार्ग दिया और एक अलग तरह का जज़्बा भरा जिसे हम उत्साह भी मान सकते हैं।