Important Questions for CBSE Class 12 Hindi Antra Chapter 21 Kutaj
The full study guide is accessible on the Extramarks Platform, which also has excellent materials for Class 12 Hindi board exams. We provide the top learning resources available here, including all of the books in PDF format, chapter-by-chapter Class 12 Hindi NCERT solutions, practice tests, key questions, all previous years’ solved problems, etc.
Choosing the right study and preparation materials during the school day can be very difficult for CBSE board students or their parents. For this purpose, the NCERT textbooks have been suggested by the CBSE or Central Board of Secondary Education. Subject-matter experts created these for the most recent CBSE curriculum. There is no better option than NCERT books and NCERT Solutions if students wish to do well on their school examinations.
CBSE Class 12 Hindi Antra Important Questions Chapter 21 Kutaj
Study Important Questions Class 12 Hindi (Antra) Chapter – 21 कुटज
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
- लेखक कुटज को और किन-किन नामों से संबोधित किया है?
उत्तर: लेखक ने कुटज को पहाडफोड, धरतीधकेल, अपराजित, आदि नामों से संबोधित किया है।
- ‘सोशल सेक्शन’ किसे कहा जाता है?
उत्तर: आधुनिक शिक्षित लोग नाम के पद पर मुहर के लगने को ‘सोशल सेक्शन’ कहते है।
- लेखक किस जगह ऊपजे पेड़ को ‘कुटज’ कहने में विशेष आनंद प्राप्त करता है?
उत्तर: लेखक ‘गिरिकूट’ पर ऊपजे पेड़ को ‘कुटज’ कहने में विशेष आनंद प्राप्त करता है।
- लेखक ने कालिदास की किस रचना का उल्लेख पाठ में किया है?
उत्तर: लेखक ने कालिदास की रचना ‘आषाढ़स्य प्रथम – दिवसे’ का उल्लेख पाठ में किया है।
- संस्कृत में ‘कुटज’ का और क्या नाम उल्लेखित मिलता है?
उत्तर: संस्कृत भाषा में ‘कुटज’ को ‘कुटच’ कहने का उल्लेख भी मिलता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
- ‘हाब्स और हेल्वेशियस’ ने क्या कहा है?
उत्तर: पश्चिमी देश के विचारक ‘हाब्स और हेल्वेशियस’ ने कहा है कि ‘दुनिया में त्याग नहीं है, प्रेम नहीं है, परार्थ नहीं है, परमार्थ नहीं है, केवल प्रचंड स्वार्थ है’|
- सिलवाँ लेवी क्या कहकर गये?
उत्तर: ‘सिलवाँ लेवी’ के अनुसार संस्कृत भाषा में बोले जाने वाले आधिकांश शब्द जैसे फलों, वृक्षों और खेत- बाग़बानी आग्नेय भाषा-परिवार के हैं और उनसे बहुत मेल खाते हैं।
- उन्नीसवीं शताब्दी के विद्वानों को क्या देखकर आश्चर्य हुआ?
उत्तर: उन्नीसवीं शताब्दी के भाषा-विज्ञानी पंडितो को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ऑस्ट्रेलिया के सुदूर वनों में रहने वाली कई जनजातियों की भाषा से संबंध रखती है| भारत की अनेक जनजातियाँ जैसे संथाल, मुंडा आदि भी इस तरह की भाषा का ही उपयोग करतीं हैं|
9- संस्कृत को सर्वग्रासी भाषा क्यों कहा गया है?
उत्तर: लेखक संस्कृत को सर्वग्रासी भाषा इसलिए मानते हैं क्योंकि इस भाषा ने किसी भी अन्य भाषा को अछूत नहीं माना है और विश्व की अनेकों भाषा के शब्दों को अपने में समाहित किया है| विश्व की कई भाषाओं और नस्लों के शब्द संस्कृत में समाकर इसी के हो गए|
- ‘आत्मनस्तु कामाय सर्व प्रियं भवति।’ का भावार्थ लिखिए।
उत्तर: इस श्लोक में ब्रह्मवादी ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी को समझाते हुए कह रहें हैं कि इस दुनिया में सब कुछ स्वार्थ के वशीभूत है| यहाँ पुत्र के लिए पुत्र प्रिय नहीं होता, पत्नी के लिए पत्नी प्रिय नहीं होती। सबका प्रेम अपने निहित स्वार्थ के कारण होता है| मूल भाव यह है कि यहाँ सभी एक दुरे से किसी ना किसी स्वार्थ के कारण जुड़ें हैं|
लघु उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)
- सुख और दुःख मन के भाव है? पाठ के आधार पर इस वक्तव्य की व्याख्या करें।
उत्तर: लेखक पाठ में कहता है कि जो व्यक्ति अपने मन में उठने वाले भावों को वश में करना जानता है, वह व्यक्ति इस संसार में सुखी रह सकता है| क्योंकि इस प्रकार उसके मन का कोई भाव या कोई इच्छा उसे कष्ट नहीं दे सकती है| जब कोई व्यक्ति अपने मन के भावों के वशीभूत होता है तो वो अपनी इच्छाओं के अधीन हो जाता है| वो अपनी इच्छा पूर्ति हेतु किसी के भी अधीन होकर उसके कहे अनुसार कर्म करने लगता है| फिर वो स्वयं को नहीं बल्कि दूसरों को खुश करने के लिए कर्म करने लगता है| और ऐसा व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है| लेखक पाठ में कह रहें हैं कि सुख और दुःख मन के भाव मात्र हैं|
- लेखक कूटज के पेड़ को बूरे दिनों का साथी क्यों मानता है?
उत्तर: लेखक के अनुसार कुटज का पेड़ ऐसा साथी है जो बुरी परस्थितियों में भी साथ देता है| कालिदास ने अपनी रचना में लिखा है कि जब यक्ष को रामगिरी पर्वत पर मेघ से अनुरोध करने के लिए भेजा जाता है, तो उस पर्वत पर भी कुटज का वृक्ष विद्यमान था| जबकि उस पर्वत पर एक दूब का तिनका भी पनपना कठिन था| लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भी वहाँ कुटज का पेड़ खड़ा हुआ था| यक्ष भी मेघ को कुटज के फुल समर्पित करके ही प्रसन्न करता है| इसलिये ही लेखक ने कुटज को बुरे दिनों का साथी कहा है|
- “कूटज, कूट और कुटनी” लेखक का इन शब्दों से क्या आशय है?
उत्तर: लेखक हजारी प्रसाद जी ने ‘कूट’ शब्द के दो अर्थ बताएं हैं – घर या घड़ा| इसलिए ही उन्होंने कुटज का अर्थ घड़े से उत्पन्न होने वाला बताया है| मुनि अगस्त्य का भी दूसरा नाम ये ही है, क्योंकि उनकी उत्पत्ति भी घड़े से ही हुई थी| इस प्रकार यदि ‘कूट’ शब्द की तरफ ध्यान देतें हैं तो ‘कूट’ शब्द का अर्थ घर होता है| लेखक ने घर में देख-रेख का कार्य करने वाली दासी को कुटनी कहा है| लेखक इन तीनो शब्दों को आपस में जोडकर देखतें हैं|
- कूटज के पेड़ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: कुटज के पेड़ से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अपना मनोबल नहीं गिरने देना चाहिए| जिस प्रकार कुटज का पेड़ विपरीत से विपरीत वातावरण और हर प्रकार की भूमि में भी पनप जाता है इस प्रकार हमें भी हर परिस्थिति में मजबूती से खड़े रहना चाहिए| यदि हम विपरीत परिस्थितियों में भी साहस और धैर्य के साथ सतत प्रयास करते रहते हैं तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है| जीवन में आने वाली बाधाएं हमें कुछ अनुभव देकर ही जातीं हैं| और ये अनुभव हमें सामान्य व्यक्ति से श्रेष्ठ व्यक्ति बनाते हैं| यदि हम आत्मविश्वास बनाये रखतें हैं तो हम भी कुटज के पेड़ के सामान हर प्रकार की परिस्थिति पर विजय प्राप्त कर सकतें हैं|
- कूटज के पेड़ के जीवन से हमें कौन सी सीख मिलती हैं?
उत्तर: कूटज के पेड़ के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ निम्नलिखित है-
(क) गर्व से सिर उठा कर जीना चाहिए।
(ख) मुश्किलों से डरना नहीं चाहिए।
(ग) किसी भी स्थिति में सहस और धैर्य बनाये रखना चाहिए।
(घ) विकट परिस्थितियों का डटकर सामना करना चाहिए।
(ड) जब तक लक्ष्य प्राप्त ना कर लें सतत प्रयास करते रहना चाहिए।
(च) आत्मनिर्भर बनना चाहिए, किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
(छ) जो भी मिले उसे सहजता के अपना लेना चाहिए
(ज) किसी भी परिस्थिति में मन को विचलित नहीं होने देना चाहिए
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)
- लेखक का ‘नाम’ के संबंध में क्या मानना है?
उत्तर: लेखक के अनुसार नाम ही किसी व्यक्ति की पहचान को पूर्ण बनाता है| इसलिए नाम का जीवन में बहुत ज्यादा महत्त्व है| हम सभी एक दुसरे को नाम से ही जानतें हैं| यदि किसी व्यक्ति का कोई नाम ना हो तो उसके पुरे हुलिए और रंग रूप की जानकारी के बाद भी उसकी कोई निश्चित सामाजिक पहचान नहीं होगी| जब हम किसी ऐसे जानकार व्यक्ति से मिलतें हैं जिसकी हमें शक्ल तो याद हो लेकिन नाम ना याद हो तो हमें उससे अपनी मुलकात अधूरी सी लगती है| समाज में भी हर व्यक्ति की पहचान नाम से ही होती है| सिर्फ मनुष्य ही नहीं वनस्पतियों और पशुओं को भी नाम से ही जाना जाता है| और इन भौतिक वस्तुओ के अतिरिक्त भी हर पदार्थ का कोई ना कोई नाम होता है| सभी निर्जीव और सजीव यहाँ तक कि निराकार वस्तुओ का भी कोई न कोई नाम होता है| नाम के आधार पर किसी भी प्राणी या वस्तु की पहचान निश्चित होती है| और नाम से ही हमें उसका अकार, आकृति, गुण, रंग और धर्म भान हो जाता है|
- ‘कूटज’ कभी हार नहीं मानता’ पाठ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: कुटज का पेड़ प्रतिकूल परिस्थितियों में भी पनप जाता हैं| जिस रामगिरी पर्वत पर दूब का एक तिनका भी नही उग पाता है, कुटज का पेड़ वहाँ भी गर्व से सर उठाये खड़ा है| कुटज के पेड़ में कैसी भी परिस्थितियों में खड़े रहने की असाधारण क्षमता होती है| पर्वतों की चोटी पर या बड़ी-बड़ी चट्टानों के मध्य, जहाँ पर कोई भी वनस्पति नही उग पाती है, कुटज वहाँ भी उग जाता है| इसकी जड़ें धरती की गहराइयों तक जाकर अपने लिए जल और पोषण के श्रोत तलाश लेने में सक्षम होतीं हैं| जिस कारण जिन स्थानों पर जीवन का कोई चिन्ह नही होता ये वहाँ भी गर्वित भाव से खड़ा रहता है| कुटज के भीतर एक असाधारण जीवन शक्ति होती है| कुटज के पेड़ की ये जीवटता मानवों को भी प्रेरणा देती है कि परिस्थितियां चाहे जितनी भी प्रतिल्कुल हों, लेकिन हमेशा साहस के साथ विपत्तियों और चुनौतियों सामना करो|
- कूटज के दृढ विश्वास और मानवीय स्वभाव की कमजोरियों की तुलनात्मक व्याख्या कीजिये|
उत्तर: लेखक के अनुसार कूटज का वृक्ष विपरीत परिस्थितियों में सिर्फ जीता ही नहीं है बल्कि ऊँचा उठकर अपने अस्तित्व को सिद्ध करता है| कुटज में असाधारण जीवन शक्ति होती है और ये किसी भी परिस्थिति में गर्वित भाव के साथ खड़ा रह पाता है| कुटज का पेड़ किसी पर निर्भर नहीं रहता है बल्कि इसकी जड़ें धरती की गहराइयों में जाकर अपने लिए जल और पोषण की खोज कर लेती हैं| जो इसके आत्मनिर्भर होने को और इसकी जीवटता को प्रमाणित करती हैं| जीवन के प्रति अपने दृढ विश्वास के कारण कुटज हर परिस्थिति में खड़ा रह सकता है| वहीँ दूसरी तरफ मानव का स्वभाव बहुत ही भीरु होता है| थोड़ी सी भी विपत्ति आने पर मानव अपना विवेक खो देता है और घबरा जाता है| विपत्तियों का सामना करने के बजाय मानव उनसे भागना शुरू कर देता है| कुटज के पेड़ की जीवटता और इसकी दृढ़ता मानवों को भी प्रेरणा देती है, कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, उनका सामना साहस के साथ करो|
- स्वार्थ हमें ग़लत मार्ग पर ले जाता है। लेखक के इस भाव की उदहारण के साथ व्याख्या कीजिये|
उत्तर: लेखक के अनुसार जब मानव अपनी आकांक्षाओं का दास बन जाता है तो वह स्वार्थी बन जाता है| वो अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अनुचित मार्ग पर भी चल सकता है| सही और गलत की पहचान करने का विवेक उस समय मानव खो देता है| मानव ने अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु ही बड़े- बड़े पुल, इमारतें, जहाज, हथियार और तोपें बनायी है| मानव का स्वार्थ उसके लालच को बढ़ाता रहता है और उसकी मांग कभी भी ख़त्म नहीं होती| हमारी इच्छाएं असीमित हो जाती हैं और हम स्वार्थी बन जातें हैं| हमारा स्वार्थ ही हमें गलत मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है| इस स्थिति में हम सिर्फ व्यक्तिगत भौतिक लाभ के बारें में सोचते हैं और अपने लाभ के लिए किसी को हानि पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते| लोग अपने थोड़े से लाभ के लिए लुट, डकैती, हत्या, मिलावटखोरी, कालाबाज़ारी और भृष्टाचार करते हैं| क्योंकि वो घोर स्वार्थी बन जातें हैं| लेकिन यदि इंसान स्वार्थ का परित्याग करके अपने मन पर नियंत्रण करना सीख जाता है तो उसके जीवन का लक्ष्य मानव कल्याण बन जाता है| और ऐसे गुणी लोग ही मानव सभ्यता और संस्कृति को विकास के पथ पर आगे बढाते हैं और महान कहलातें हैं| शंकराचार्य जी, विवेकानंद जी, महावीर स्वामी, बुद्ध, गुरुनानक और गांधी जैसी महान विभूतियाँ इसका ही उदाहरण हैं|
- “मुश्किल परिस्थितियों से गुज़रकर निकले लोग अक्सर बेहया हो जाते है” पाठ के अनुसार इस कथन की व्याख्या कीजिये|
उत्तर: कुटज के पेड़ को लेखक ने बेहया कहा है| क्योंकि कुटज कैसी भी परिस्थिति में पनप सकता है और खड़ा रहता है| कुटज प्रतिकूल परिस्थिति में भी जीने के लिए जूझता रहता है और आखिर एक समय पर विजेता बनकर उभरता है| इस प्रकार ही जो व्यक्ति अपनी हया और अभिमान को त्याग कर अपना कार्य करता है, वो परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेता है| दुसरे शब्दों में कहें तो जो व्यक्ति विकट परस्थितियों से लड़ने का मार्ग अपनाता है उसके भीतर किसी प्रकार की शर्म या अभिमान का भाव शेष नहीं रहता| वो मौन रहकर सिर्फ अपना काम करता है| लोग उसके बारें में क्या सोचते हैं या क्या कहतें हैं? उसपर इन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता| क्योंकि वो इस विषय में ना सोचकर अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य को सिद्ध करने पर लगाता है| कह सकते हैं की वो निर्लज्ज बन जाता है| विपरीत परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति का ये निर्लज्ज स्वभाव ही उसकी शक्ति बन जाता है और वो विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर पाता है|