CBSE Class 12 Hindi Aroh Important Questions Chapter 12 Bazar Darshan
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CBSE Class 12 Hindi Aroh Important Questions Chapter 12 Bazar Darshan
Study Important Questions Class 12 Hindi आरोह Chapter 12 – बाज़ार दर्शन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
- निम्न शब्दों का शब्दार्थ बताइये।
दत्तक तथा बेहया
उत्तर: बेहया – बेशर्म, निर्लज़्ज़
दत्तक – गोद लिया हुआ
- निम्न शब्दों का विलोम लिखिए।
बेचक तथा वंचित
उत्तर: बेचक – ग्राहक
वंचित – संपन्न
- बाज़ार तथा व्यापार का पर्यायवाची बताइए।
उत्तर: व्यापार – रोज़गार, व्यवसाय
बाज़ार – हाट, मंडी
- भगत जी बाज़ार में क्या बेचते थे?
उत्तर: भगत जी बाज़ार में चूरण बेचा करते थे।
- चूरन बेचकर भगत जी को रोज़ कितनी कमाई हो जाती थी?
उत्तर: भगत जी हर रोज़ चूरन बेचकर छ: पैसे कमाते थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
- लेखक के मित्र परेशान क्यों थे?
उत्तर: लेखक के मित्र परेशान थे क्योंकि उनकी पत्नी बाज़ार से बहुत सारा अनुपयोगी सामान खरीद लायीं थी|
- बाज़ार के लिए हर व्यक्ति क्या है?
उत्तर: बाज़ार प्रत्येक व्यक्ति को बस एक ग्राहक की नज़र से देखता है| बाज़ार के लिए किसी का लिंग, जाती, क्षेत्र या धर्म कोई मायने नहीं रखता| इसलिए कह सकते हैं कि बाज़ार के लिए हर व्यक्ति एक सामान है|
- बाज़ार में भगत जी का कौन सा व्यक्तित्व सामने आया था?
उत्तर: भगत जी का स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण उनके व्यक्तित्व का वो पक्ष था जो बाज़ार में सामने आया था|
- बाज़ारूपन किसे कहते हैं?
उत्तर: बाज़ार में साधारण और मामूली चीजों को भी झूठ बोलकर ऊँचे दामो पर बेचने को बाज़ारूपन कहते हैं|
- लेखक के पास से मोटर के गुजरने पर उसके मन में क्या विचार आया?
उत्तर: बाज़ार में घूमते समय लेखक के पास से एक मोटर धुल उड़ाते हुए गुज़रती है| तब लेखक के मन में विचार आता है कि जैसे ये मोटर उनपर व्यंग्य कर रही हो ‘देखो मैं हूँ मोटर और तुम मुझसे वंचित हो|’
लघु उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)
- बाज़ार में मनुष्य किस जाल में फंस जाता है? मनुष्य को कब पश्चाताप होता है?
उत्तर: बाज़ार एक मायाजाल की तरह है जिसमें कोई भी फंस जाता है| बाज़ार की चकाचोंध में कोई भी इसके आकर्षण में फंस कर वो चीज़े भी खरीद लेता है जिनकी उसे जरुरत नहीं| इस तरह वो गैर ज़रूरी खर्च कर बैठता है| लेकिन जब वो घर पहुँचता है तो उसे अपनी इस फ़िज़ूल खर्ची पर पश्चाताप होता है|
- भगत जी बाज़ार में क्या करते है?
उत्तर: भगत जी एक समझदार व्यक्ति हैं और वो बाज़ार के मायाजाल में नहीं उलझते| उन पर बाज़ार की चका-चौंधका कोई असर नहीं पड़ता है| उन्हें यदि ज़ीरा, काला नमक, आदि खरीदना होता है तो वो बाज़ार फालतू दुकानों पर नहीं भटकते| बल्कि वो सीधा पंसारी की दूकान पर जातें है और ज़रूरत का सामान खरीद लेते हैं| इस तरह वो फालतू की चीज़े ना खरीदकर फ़िज़ूल खर्च से बचे रहते हैं|
- बाज़ार को सार्थक किस प्रकार के दुकानदार तथा ग्राहक बनातें हैं?
उत्तर: बाज़ार की सार्थकता दुकानदार और ग्राहक के सार्थक लेन-देन से जुडी होती है| यदि दुकानदार सिर्फ ग्राहक की ज़रुरतो को पूरा कर सकने वाले विशिष्ट सामान ही अपनी दूकान पर रखता है, दुकानदार चमक-दमक के सहारे गैर ज़रूरी सामान बेचने की कोशिश नहीं करता है, तो ये सार्थक दुकानदार है| इस प्रकार ही जब ग्राहक खरीदारी के समय सजग रहते हुए बिना किसी चमक-दमक के जाल में फंसे सिर्फ ज़रूरत का सामान ही खरीदता है, तो यह एक सार्थक ग्राहक है| ये दोनों मिलकर बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं|
- पाठ के अनुसार ग्राहक कितने प्रकार के होते है?
उत्तर: पाठ के अनुसार निम्न प्रकार के ग्राहक होतें हैं।
क्रय-शक्ति को प्रदान करने वाले
भरी जेब एवं भरे मन वाले
ख़ाली ज़ेब एवं ख़ाली मन वाले
मितव्ययी और धैर्य रखने वाले
अपव्ययी ग्राहक
बाज़ारूपन को प्रोत्साहित करने वाले
- जैनेन्द्र कुमार जी का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
उत्तर: जैनेन्द्र कुमार का जन्म 1905 में अलीगढ, उत्तर प्रदेश में हुआ था| प्रेमचंद के बाद जैनेन्द्र कुमार लेखन विधा में विशिष्ट स्थान रखतें हैं| उन्हें हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है| इनकी प्रसिद्ध कथाएं परख, सुनीता, त्याग पत्र, अनाम स्वामी, जयवर्धन, मुक्तिबोध, इत्यादि हैं। इनको साहित्य अकादमी पुरुष्कार और पद्म भूषण सम्मान से भी समानित किया गया| जैनेन्द्र जी का निधन 1990 में हुआ|
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)
- बाज़ार किस आधार पर समाज को विभाजित करता है?|
उत्तर: वैसे तो बाज़ार के लिए हर व्यक्ति बस एक ग्राहक होता है| बाज़ार किसी को भी उसकी जात, धर्म, या क्षेत्र के आधार पर विभाजित नहीं करता| लेकिन सामजिक विभाजन से अलग एक आधार है जिसके आधार पर बाज़ार अपने ग्राहकों विभाजित करता है| बाज़ार किसी भी व्यक्ति को उसकी क्रय शक्ति अर्थात उसके खर्च करने की क्षमता और मानसिकता के आधार पर देखता है| बाज़ार का किसी भी व्यक्ति से समबन्ध उसके लेनदेन के आधार पर ही है|
- बाज़ार ग्राहकों से क्या कहता है?
उत्तर: लेखक ने कथा में बाज़ार का मानवीकरण किया है| लेखक के अनुसार बाज़ार कहता है “आओ मुझे लूटो, और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो तो भी देखने में क्या हर्ज़ है। अजी आओ भी।” बाज़ार किसी ग्राहक के साथ ये संवाद शाब्दिक भाषा में ना करके अपनी चका-चौंध के मायाजाल से करता है| यदि ग्राहक धैर्यवान और सजग नहीं होता है तो वह बाज़ार की इस चका-चौंध से सम्मोहित होकर गैर ज़रूरी चीज़े खरीद कर फ़िज़ूल खर्च कर बैठता है| जिसके कारण आर्थिक व अन्य समस्या ग्राहक के साथ उत्पन हो सकती हैं|
- लेख़क के मित्र बाज़ार से कुछ भी क्यों नहीं ले सके?
उत्तर: लेखक के मित्र जब बाज़ार में जाते हैं तो बाज़ार में घूमते हुए उनकी नज़र हर दूकान पर जाती है| बाज़ार की चका-चौंध से लेखक के मित्र सम्मोहित होने लगते हैं| वहाँ बिक रही हर चीज़ को खरीदने की इच्छा लेखक के मित्र में मन में बलवती होने लगती है| वो बाज़ार में बिक रही हर चीज़ की तरफ मोहित होने लगते हैं| ये सबकुछ पा लेने की इच्छा ही मनुष्य के त्रास का कारण बनती है| लेकिन लेखक के मित्र अपने विवेक से इस त्रासदी को सजगता से टाल देते हैं और वो कुछ भी नहीं खरीदते| इस तरह वो दोपहर को बाज़ार में जाने के बाद शाम को बिना कुछ ख़रीदे ही घर वापस लौट आते हैं|
- बाज़ार में क्या चीज़ ग्राहकों को आकर्षित करती है? तथा जादू का असर कब अधिक होता है?
उत्तर: बाज़ार एक मायाजाल की तरह है| बाज़ार की चका-चौंध में बाज़ार की हर चीज़ किसी को भी सम्मोहित करके अपनी तरफ खींचती है| व्यक्ति की बाज़ार की हर चीज़ को पा लेने की इच्छा होने लगती है| बाज़ार में बिक रही हर छोटी-बड़ी चीज़ ग्राहक को ऐसे अपनी तरफ खींचती है जैसे चुम्बक लोहे को| बाज़ार की चमक आँखों को आकर्षित करती है| इस बाजारू आकर्षण का असर मानव मस्तिष्क पर तब ज़्यादा पड़ता है जब उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता है या उसकी जेब भरी और मन खाली होता है|
- लेखक ने बाज़ार के जादू से बचने का क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: बाज़ार की चमक-दमक से आकर्षित हो जाना सामान्य है लेकिन लेखक ने अपने लेख में बाज़ार के इस मायाजाल से बचने के लिए कुछ उपाय भी सुझाये हैं| जैसे की जब भी बाज़ार खरीदारी करने जाओ तो एक सूचि बनाकर जाओ| उन दुकानों पर ही जाओ जहाँ से तुम्हे वो सामान मिलेगा| यदि जो भी खरीदना, ये पहले से सुनिश्चित करके जाओगे तो अनावश्यक खरीदारी से बच पाओगे| इस तरह ग्राहक के पैसे भी बचेंगेऔर घर आकर उसे पश्चाताप भी नहीं होगा| इसके अलावा स्वयं पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी है| जहाँ से कुछ खरीदारी नहीं करनी उस दूकान पर मत जाओ| बाज़ार में दुकानों की चका-चौंध आँखों को आकर्षित करती है| सजगता से स्वयं पर संयम रखना चाहिए ताकि बाज़ार की चका-चौंध मस्तिष्क पर हावी ना हो|