Class 12 Hindi NCERT Solutions for Aroh Chapter 18 Shram Bibhajan Aur Jati Pratha – Meri Kalpana ka Adarsh Samaj
Shram Bibhajan Aur Jati Pratha and Meri Kalpana ka Adarsh Samaj are both deep social satires written by Dr. Bhimrao Ambedkar. In the first poem, ‘Shram Bibhajan Aur Jati Pratha’ Dr. Bhimrao Ambedkar raised his voice against the age-old practise of deciding one’s profession by the caste they are born into. In early India, a king’s son was born to become a king, even if he lacked the power to command, and a smithsman’s son was destined to be a smithsman despite having the heart of a ruler. Dr. Bhimrao Ambedkar was one of the most powerful social reformers who raised his voice against this tradition and opened the doors of equality for everyone.
In the second poem ‘Meri Kalpana ka Adarsh Samaj’, Dr. Bhimrao Ambedkar talks about the ideal society that he dreams about. He says that an ideal society can be created on the foundation of three important pillars – equality, independence, and friendship. Dr. Ambedkar says that an ideal society is one that is both independent and capable.
Both of these chapters are very interesting and can help shape a student’s attitudes toward society.Dr. BhimRao Ambedkar was a powerful force in bringing about significant changes in society.His work, particularly with backward communities, has shaped the face of modern India.As such, going through the pieces of his work will definitely help the young students develop a sensibility for building a better society.
The chapters ‘Shram Bibhajan Aur Jati Pratha’ and ‘Meri Kalpana ka Adarsh Samaj’ are included in the Class 12 Hindi NCERT Aroh textbook. Students can easily download the PDF versions of these chapters from Extramarks. You can also access the important questions, revision notes, and previous years’ question papers on the Extramarks website. Going through all these materials can help you score well in your examinations.
Important Questions for Class 12
Hindi Aroh
Chapter 18- श्रम – विभाजन और जाति –प्रथा /मेरी कल्पना का आदर्श समाज
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1: लेखक श्रम विभाजन का दूसरा रूप किसे कहते हैं ?
उत्तर: लेखक कहते हैं कि श्रम विभाजन का दूसरा रूप जाति प्रथा है।
2: बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण क्या है?
उत्तर: बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण है –जाति प्रथा के कारण पेशा बदलने की अनुमति न होना।
3: हिन्दू धर्म की जाती प्रथा महमें क्या चुनने की अनुमति नहीं देती?
उत्तर: हिन्दू धर्म की जाति प्रथा हमें अपने मन और प्रतिभा के अनुसार पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है।
4: लेखक का आदर्श –समाज किस प्रकार आधारित होगा?
उत्तर: लेखक कहते हैं कि उनके अनुसार आदर्श समाज स्वतंत्रता और समानता पर आधारित होगा।
5: लेखक के अनुसार भाईचारे का वास्तविक रूप कैसा होना चाहिए ?
उत्तर: लेखक के अनुसार भाईचारे का वास्तविक रूप दूध पानी के मिश्रण की तरह होना चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
6: डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष किससे जुड़ा था?
उत्तर: डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जीवन दलितों के अधिकारों , सामाजिक समानता, तथा आधुनिक भारत से जुड़े संघर्षों से जुड़ा था।
7: पेशा बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ सकती है?
उत्तर: कभी कभी उद्योग धंधों में उतार चढ़ाव आते हैं जिसके कारण व्यक्ति का पेशा छूट सकता है। काम बंद होने के कारण मनुष्य भूखा न रहे इसलिए उसे पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है। पेशा अनुपयुक्त तथा अपर्याप्त हो तब भी पेशा बदलने की अनुमति होनी चाहिए।
8: लेखक आदर्श समाज की गतिशीलता पर क्या टिप्पणी करते हैं?
उत्तर: लेखक के अनुसार आदर्श समाज की गतिशीलता इतनी होनी चाहिए कि कोई भी परिवर्तन समाज में तुरंत प्रसारित हो जाए।
9: इस प्रस्तुत पाठ का आधार क्या है?
उत्तर: इस प्रस्तुत पाठ का आधार भीमराव अंबेडकर द्वारा रचित भाषण एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट (1936) है जिसका अनुवाद ललई सिंह यादव ने ‘जाति–भेद का उच्छेद‘ शीर्षक के अंतर्गत किया है।
10: ‘अबाध संपर्क‘ से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: ‘अबाध संपर्क‘ से लेखक यह कहना चाहते हैं कि सबको संपर्क के साधन तथा अवसर मिलने चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
11: लेखक की दृष्टिमें लोकतंत्र क्या है?
उत्तर: लेखक की दृष्टि में लोकतंत्र सामाजिक जीवनचर्या की एक रीति व समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान प्रदान का नाम है।
12: लेखक भारत की जाति –प्रथा की क्या विशेषता बताते हैं?
उत्तर: लेखक भारत की जाति–प्रथा के बारे में यह बताते हैं कि यह न केवल श्रम तथा श्रमिकों को अलग अलग करती है परन्तु विभाजित वर्गों में एक दूसरे के प्रति ऊंच नीच की भावना भी प्रकट कर देती है।
13: लेखक कुशल व्यक्ति या सक्षम –श्रमिक समाज पर क्या टिप्पणी करते हैं ?
उत्तर: लेखक सक्षम –श्रमिक समाज या कुशल व्यक्ति में बारे में यह कहते हैं कि ऐसे समाज के लिए हमें व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार इतना विकसित करना चाहिए कि आगे बढ़कर वह अपना श्रम खुद चुन सके।
14: जाति–प्रथा के दूषित सिद्धांत का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर: जाति–प्रथा के दूषित सिद्धांतों का लोगों पर विपरीत असर पड़ता है। लोग पहले से निर्धारित पेशे में बंधकर रह जाते हैं , भले ही उन्हें उस वजह से भूखा ही क्यों न मरना पड़े।
15: लेखक जाति–प्रथा के दूषित सिद्धांत के बारे में क्या कहते हैं ?
उत्तर: लेखक कहते हैं कि मनुष्य की मर्ज़ी एवं प्रतिभा को नज़रअंदाज़ करके उसके माता–पिता का सामाजिक स्तर यानि जाति के अनुसार जन्म से पहले ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
16: ” इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति–प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है। ” इस वाक्य का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर: लेखक के अनुसार , इस वाक्य का अर्थ है कि जाति प्रथा का एक दूषित सिद्धांत है जिसमें उनका कहना है कि जन्म से पहले ही जाति के आधार पर श्रम तय हो जाने के कारण न तो व्यक्ति की इच्छा देखी जाती है और न ही उसकी कला और प्रतिभा का सम्मान किया जाता है। इसके कारण व जीवन भर एक ही पेशे में बंधकर रह जाता है। कुछ ऐसीं परिस्थितियां ऐसे आतीं हैं जहाँ व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की ज़रूरत पड़ सकती है लेकिन जाति–प्रथा के कारण उसको इसकी अनुमति नहीं दी जाती ,भले ही उसका पूर्व निर्धारित पेशा अनुपयुक्त और अपर्याप्त हो तथा उसे भूखा ही क्यों न मरना पड़े।
17: जाति व्यवस्था को श्रम–विभाजन के रूप में नहीं मानने का बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का तर्क क्या है?
उत्तर: जाति–प्रथा को श्रम –विभाजन के रूप में नहीं मानने के बाबा साहब अम्बेडकर के निम्नलिखित कारण हैं –
- श्रम विभाजन के कारण मनुष्य की प्रतिभा था इच्छा कोअज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
- उसे पेशा चुनने तथा बदलने की अनुमति नहीं है।
- पेशा जाति के अनुसार जन्म से पहले ही निर्धारित कर दिया जाता है।
- मनुष्य को अपने अधिकार नहीं दिए जाते हैं।
18: लेखक की दृष्टिसे ‘दासता‘ की व्यापक परिभाषा क्या है?
उत्तर: लेखक ने कहा है कि एक आदर्श समाज में लोकतंत्र होना चाहिए। सबको हर प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की जाए। सबको अपना जीवन जीने के लिए जो भी सामान व औजार ज़रूरी हैं जैसे सम्पत्ति , सुरक्षा , आगमन, आदि सब रखने का अधिकार होना चाहिए। इस पर किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस सबके लिए मनुष्य को उसका व्यवसाय चुनने के लिए स्वतंत्रता देना ज़रूरी है। यदि ऐसा नहीं होता है तो वह व्यक्ति दासता में जकड़कर रह जाता है। बात कानूनी ही नहीं बल्कि वहां भी लागू होती है जहाँ लोगों को निर्धारित काम करने के लिए विवश होना पड़ता है।
19: जाति व्यवस्था आर्थिक विकास में रोड़ा कैसे है?
उत्तर: जाती व्यवस्था आर्थिक विकास में रोड़ा है क्यूंकि इसके अनुसार व्यक्ती का पेशा जाति के आधार पर पूर्व निर्धारित कर दिया जाता है। मनुष्य की प्रतिभा ,योग्यता तथा इच्छा का कोई मूल्य नहीं होता। उसे पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। इसके कारण व्यक्ति अपनी इच्छा के विपरीत पूर्व–निर्धारित पेशा अपनाता है। जिसमें वह उतनाअच्छा नहीं होता तथा न ही उसमे उसकी रूचि होती है। प्रतिभा के अनुसार पेशा न मिलने के कारण वह पूरे मन तथा एकाग्रता से काम नहीं कर पाता जिसके कारण से आर्थिक विकास नहीं हो पाता।
20: लेखक किसे निष्पक्ष निर्णय नहीं मानते हैं ? न्याय मांग क्या है?
उत्तर: लेखक कहते हैं उच्च वर्ग के लोग ही प्रतियोगिता में अव्वल आते हैं क्यूंकि उन्हें हर चीज़ एक लाभ प्राप्त होता है जैसे शिक्षा , सामाजिक सम्मान , धन ,पेशेवर प्रतिष्ठा ,आदि। इस सबके कारण केवल उच्च वर्ग से ही अच्छा व्यवहार किया जाता है जो कि निष्पक्ष निर्णय नहीं है। न्याय की मांग यह है कि हर मनुष्य से एक जैसे व्यवहार किया जाना चाहिए न कि उनकी जाति और विरासत के आधार पर।