Home > कक्षा – 10
प्र01 मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है
(a) पोषण (b) श्वसन
(c) उत्सर्जन (d) परिवहन
उ0 (c) उत्सर्जन
प्र02 पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन (b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन (d) ऑक्सीजन का वहन
उ0 (a) जल का वहन
प्र03 स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल (b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश (d) उपरोक्त सभी
उ0 (d) उपरोक्त सभी
प्र04 पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है –
(a) कोशिकाद्रव्य (b) माइटोकाँन्ड्रिया
(c) हरित लवक (d) केंद्रक
उ0 (b) माइटोकाँन्ड्रिया
प्र05 हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उ0 आंशिक रूप से पचा भोजन जब आमाशय से क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है वह अम्लीय होता है| क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पूर्ण पाचन का स्थल है। यकृत द्वारा क्षुद्रांत्र में पित्तरस स्रावित होता है| पित्तरस में उपस्थित पित्त लवण आंशिक रूप से पचे भोजन की अम्लता को निष्प्रभावित करता है | पित्त लवण वसा का इमल्सीकरण करके उसे गोलिकाओं में खंडित कर देता है जिससे अग्न्याशयिक एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। अग्न्याशयिक रस में उपस्थित अग्न्याशयिक एंजाइम जैसे कि लाइपेज एंजाइम वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है ।
यह पूरी क्रिया क्षुद्रांत्र में होती है |
प्र06 भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उ0 लार में 99.5 प्रतिशत जल, श्लेष्म, टायलिन तथा लाइसोजाइम होता है।
प्र07 स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उ0 स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं –
हरे पौधों में क्लोरोफिल के कारण स्वपोषण होता है। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2 ) तथा जल से कार्बनिक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम में ग्लूकोज का संश्लेषण होता है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होती है।
प्र08 वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर हैं? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उ0
2. वायवीय श्वसन में भोजन का पूर्ण विखंडन होता है।
3. वायवीय श्वसन में अंतिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड और जल होते हैं।
4. वायवीय श्वसन में काफी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
2. अवायवीय श्वसन में भोजन का आंशिक विखंडन होता है।
3. श्वसन में अंतिम उत्पाद एथेनॉल और कार्बन डाइऑक्साइड (जैसा कि यीस्ट में) अथवा लैक्टिक अम्ल (जैसा कि प्राणी पेशियों में) हो सकते हैं।
4. अवायवीय श्वसन में काफी कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।
बैक्टीरिया और यीस्ट में अवायवीय श्वसन होता है।
प्र09 गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उ0 श्वासनाल (ट्रैकिया) वक्ष गुहा में पहुँचकर शाखाओं तथा उपशाखाओं में बंट जाता है। अंतिम शाखाओं को कूपिका नलिकाएँ कहते हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका 2-3 छोटे-छोटे आशय या कोष्ठक सदृश्य रचना बनाती है, इन्हें कूपिकाएँ कहते हैं। कूपिकाएँ पतली भित्ति वली शल्की कोशिकाओं से बनी होती है। इनके बाहर संयोजी ऊतक का पतला स्तर होता है। संयोजी ऊतक में रक्त केशिकाओं का घना जाल बिछा रहता है। श्वसन सतह पर सक्रियन तरल का पतला स्तर होता है। यह केशिकाओं को नम रखता है। कूपिकाओं की रक्त केशिकाएँ एक ओर फुफ्फुसीय धमनियों से तथा दूसरी ओर फुफ्फुसीय शिराओं की शाखाओं से संबंधित होती हैं। कूपिकाओं तक वायु को लाने ले जाने के लिए उपयुक्त व्यवस्था होती है।
उपर्युक्त कारणों से कूपिकाएँ गैसों के आदान-प्रदान के लिए अधिकतम उपयोगी होती हैं।
प्र10 हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उ0 साँस लेने और श्वसन (ऊर्जा की निर्मुक्ति) के लिए आवश्यक ऑक्सीजन हमारे रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन द्वारा ले जायी जाती है। किसी व्यक्ति के रक्त में हीमोग्लोबिन का अभाव रक्त की ऑक्सीजन-वाही क्षमता को कम करता है। जिसके फलस्वरूप सांस लेने की समस्याएँ, थकान और ऊर्जा की कमी उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति पीला दिखाई देता है और भार खो देता है।
प्र11 मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उ0 मनुष्य में दोहरा रक्त परिसंचरण होता है। इसमें रूधिर के एक बार अंगों से लौट आने पर रूधिर को वापस अंगों में जाने से पहले हृदय में से दो बार गुजरना होता है। हृदय में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रूधिरको पूर्णरूपेण पृथक रखने की व्यवस्था होती है। पक्षी और स्तनियों के हृदय के दाएँ-बाएँ भाग बिल्कुल पृथक रूधिर मार्गों का काम करते हैं। दायाँ भाग पूरे शरीर से विऑक्सीजनित रूधिर एकत्र करके फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजता है। तथा बायाँ भाग फेफड़ों से ऑक्सीजनित रूधिर एकत्र करके पूरे शरीर में पंप करता है, अर्थात् हृदय का दायाँ भाग फुफ्फुसीय हृदय के रूप में तथा बायाँ भाग दैहिक हृदय के रूप में कार्य करता है। इसे ही दोहरा रक्त परिसंरचरण कहते हैं।
मनुष्य में भी दोहरा रक्त परिसंचरण होता है। इसके फलस्वरूप शरीर की कोशिकाओं को अधिक ऑक्सीजन अर्थात् ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है। मनुष्य को अपने शरीर के ताप को नियंत्रित रखने के लिए अधिक ऊर्जा की आश्यकता होती है। इसकी पूर्ति दोहरे रक्त परिसंचरण से होती रहती है।
प्र12 जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
2. जाइलम में पदार्थों का परिवहन वाहिकाओं तथा वाहिनियों द्वारा होता है, जो मृत ऊतक है।
3. वाष्पोत्सर्जन के कारण ऊपर की ओर जल तथा घुले लवणों का चढ़ना संभव हो पाता है। यह पत्ती की कोशिकाओं से जल अणुओं के वाष्पीकरण से उत्पन्न खिंचवा के कारण होता है।
4. जल का परिवहन सरल भौतिक गति के अंतर्गत होता है। ऊर्जा खर्च नहीं होती। अतः ATP की आवश्यकता नहीं है।
2. फ्लोएम में पदार्थों का परिवहन चालनी ट्यूबों द्वारा सहचर कोशिकाओं की मदद से होता है, जो जैव कोशिकाएँ हैं।
3. स्थानांतरण में पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ATP ऊर्जा का उपयोग करते हुए होता है। यह परासरण दाब बढ़ा देता है जो फ्लोएम से पदार्थों को ऊतकों की ओर भेजता है, जिनमें दाब कम होता है।
4. फ्लोएम में स्थानांतरण एक सक्रिय क्रिया है तथा इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है।
प्र13 फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रान) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
2. प्रत्येक फेफड़े में लगभग 15 करोड़ वायु कूपिकाएँ होती हैं।
3. ये छोटी थैलीनुमा रचनाएँ होती हैं। कूपिका नलिकाएँ 2-वायु कूपिकाओं के समूह में खुलती हैं।
4. वायु कूपिकाओं में रक्त से CO2 को पृथक किया जाता है। CO2 युक्त वायु को निःश्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
5. वायु कूपिकाओं में वायु विसरण द्वारा रक्त कोशिकाओं में पहुँचती है और लाल रूधिराणुओं द्वारा ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाई जाती है।
2. प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख वृक्काणु होते हैं।
3. ये अत्यधिक कुंडलित संरचनाएँ होती हैं। प्रत्येक वृक्काणु के दो भाग होते हैं – मैलपीघी कोष तथा स्त्रावी नलिका।
4. वृक्काणु रक्त से यूरिया, यूरोक्रोम एवं आवश्यकता से अधिक लवण, जल आदि को मूत्र के रूप में पृथक करते हैं।
5. बोमेन संपुट में रक्त के छनने से जो नेफ्रिक फिल्ट्रेट बनता है, उसमें से ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण आदि का पुनः अवशोषण स्त्रावी नलिका में हो जाता है।